Sri Nanak Prakash

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२०. श्री गुरू हरिराइ मंगल लेखा कीता, ३२१) वाधा लए॥

{दौलत खां ळ नानक नाम दे अरथ दज़से} ॥३७..॥
{लेखा कीता, ३२१) वाधा लए} ॥५५॥
{नवाब दी कुतरक, } ॥३९..॥
{गुरू जी वलोण कुतरक दा अुज़तर} ॥४३..॥
दोहरा: स्री सतिगुरू सहाइ मम,
सिमर सिमर सुखपाइ
दारिद कलमल मल दलिन,
जै जै श्री हरिराइ ॥१॥
मम=मेरे दारिद=दलिद्र, ग्रीबी, कंगालताई
संस: दारिद्रण॥
कलमल=पाप मल=मैला
दलिनि=दल सिज़टं वाले, दूर करन वाले
अरथ: मेरे (सदा) सहाइक श्री सतिगुरू (जी जिन्हां ळ) सिमर सिमर के (मैण सदा
ही) सुख पाए हन, (जो) दरिज़द्र (अते) पापां दी मैल ळ दूर करन वाले
हन, (ऐसे) स्री हरिराइ जी दी जै हो, जै हो
श्री बाला संधुरुवाच ॥
चौपई: सुनि श्री अंगद करुना१ खानी!
गुर नानक की कथा महानी२
इस अुतसाहि भए ते पाछे
मोदीकार चलावहिण आछे ॥२॥
आइ छुधातरु३ देण तिह असना४
बसन बिहीन लखहिण, देण बसना५
जाचि न कोअू गमनो छूछा
आइण बिदेशी आपन६ पूछा ॥३॥
वडी भोर ते देवन लागहिण
जाम निसा लौ७ छूछ न तागहिण१

१किरपा
२स्रेशट
३भुज़खा
४भोजन
५कपड़ा
पा:-जावत
६हज़टी
७पहिर रात गई तज़क

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