Faridkot Wala Teeka
ऐसे घर हम बहुतु बसाए ॥
जब हम राम गरभ होइ आए ॥१॥ रहाअु ॥
हे राम जब (हम) हंकार संजुगत हूए गरब मै प्रापति होइ आए हैण तब ऐसे
घर हमने बहुत बसाए हैण॥ ऐसे कैसे?
जोगी जती तपी ब्रहमचारी ॥
कबहू राजा छत्रपति कबहू भेखारी ॥२॥
जोगी हूए जती तपी ब्रहमचारी हूए कबी चक्रवरती राजा हूए कभी भिखा माणगने
वाले हूए ॥२॥
साकत मरहि संत सभि जीवहि ॥
राम रसाइनु रसना पीवहि ॥३॥
परंतू जो तेरे से बेमुख साकत है सो मरते हैण और संत सभ जीवते हैण जे कहे कि
संत किस कर जीवते हैण तिस पर कहते हैण हे राम तेरे जो नाम रसोण का घर अंम्रित है सो
रसना कर पीवते हैण॥३॥
कहु कबीर प्रभ किरपा कीजै ॥
हारि परे अब पूरा दीजै ॥४॥१३॥
स्री कबीर जी कहते हैण हे प्रभू हमारे पर दया करीए चौरासी मै भरमते हूए हार
कर तेरी सरन पड़े हां अब पूराजो मोख पद है सो दीजीए॥४॥१३॥
गअुड़ी कबीर जी की नालि रलाइ लिखिआ महला ५ ॥
जब कबीर जी गुरू अरजन जी के दरसन को आए तब गुरू जी ने इह सबद
सिरोपाअु बखसिआ सबद गुरू जी का है नाम कबीर जा का कर दीआ है इस तरां के सबद
इसी परसंग मै समझ लैंे॥
ऐसो अचरजु देखिओ कबीर ॥
दधि कै भोलै बिरोलै नीरु ॥१॥ रहाअु ॥
कबीर जी कहते हैण संसार मै ऐसा आसचरज देखिआ है दही के भुलावै जल को
रिड़क रहे हैण भाव इह कि निसकाम करमोण के भूलावे सकाम करते हैण तिनका अंतशकरन
सुध नहीण होता॥१॥
हरी अंगूरी गदहा चरै ॥
नित अुठि हासै हीगै मरै ॥१॥
विखिओण रूपी हरी अंगूरी को मन रूपी गधा चरता है१ निताप्रती अुठकर प्रसंन
होता है (हीगै) हंकार कर जनमता मरता है॥१॥
माता भैसा अंमुहा जाइ ॥
कुदि कुदि चरै रसातलि पाइ ॥२॥
पुना मन कैसा है मसतभैसा है अमोड़ ही जाता है भाव इह कि वेद सासत्र और
गुरोण की आगिआ रूपी बाड़ चीर कर विखे खेती को खाता है कुदि कुदि कर अरथात प्रसंन
हो कर चरता खाता है॥
*१ मन गद गद अरथात अती प्रसिंन होकर खाता है॥