Faridkot Wala Teeka
कहु कबीर इअु रामहि जंपअु मेटि जनम मरना ॥४॥५॥
हमने सिंम्रतीआण और बेद और पुरान सभ खोजे हैण परंतू बिनां नाम से काल से
(अूबरना) बचना (कहू) किते नहीण लिखा है स्री कबीर जी कहते हैण राम को जपो इअुण
जनमना मरना मेट देहो॥४॥५॥
वंझिआ के पुत्र के बिवाह का इह सारा सबद आजातबाद है अरथात जैसे इह
सभ मिथिआ परतीत होता है कि असंभव है कदापि नहीण होगा और सभ सामान बना है
तिसी प्रकार प्रपंच मिथिआ है वासतव ब्रहम ही ब्रहम है न कुछ हूआ है न होगा इह
एक कलपना मात्र है॥ सिधांत अरथ तो इस का इह है परंतू बुधवानोण ने और भी अरथ
कलपना कीआ है॥ अुथानका इह कि कबीर जी के ताए के पुत्र का बिआह था लोक बरात
मेण चलने वासते कहने लगे तब कबीर जी ने कहा कि हमतो बहुत बड़ी बड़ी बारातोण मेण
गए हैण॥ इस अरथ मेणबंस को पूत बिआहन चलिओ इहां से अरथ करना वा अुपदेस
वाक जानणा॥
आसा ॥
फीलु रबाबी बलदु पखावज कअूआ ताल बजावै ॥
पहिरि चोलना गदहा नाचै भैसा भगति करावै ॥१॥
मन जो (फीलु) हसती वत था सो (रबाबी) रब की अब वाला हो गिआ अरथात
तरावत वाला हो गिआ है (बलदु) आलस भी परमेसर के (पखावजु) पख मेण आबजा है
किआ प्रगट है क्रोध युकत मन रूप कअूआ खमा वाल हो कर परमेसर नामो चारन रूप
ताल बजाअुता है काम युकत मन रूप जो गधा था सो लज़जा रूप चोलना पहिर करके
परमेसर के निरने रूप निरत करता है (भैसा) लोभ युकत भगती करता है औरोण से भी
करावता है अरथात अब मन को भगती का लोभ हो गिआ है॥१॥
राजा राम ककरीआ बरे पकाए ॥
किनै बूझनहारै खाए ॥१॥ रहाअु ॥
जो बिकार कामादि अके कीआण कुकड़ीआण के सम दुख रूप हैसन सो गुर क्रिपा से
राजा राम के अुपदेस लेने से आणबोण सम सुख रूप हो जाते भए हैण किसे बूझने हारे ने इह
आणब खाए हैण भाव किसी अुतम अधिकारी ने इह गुन धारन करे हैण॥
बैठिसिंघु घरि पान लगावै घीस गलअुरे लिआवै ॥
बैठ करके सिंघ सुध हंकार (घरि) अंतसकरण मेण बेद बाक सिंम्रित वाक
महातमाओण के वाक अपना अनभव रूप चूना कथा सुपारी मिला कर पान लगाअुता है और
बुधी घीस जहां तहां से खोज कर भगवंत के गुण रूप (गलअुरे) लडू लिआअुती है॥
घरि घरि मुसरी मंगलु गावहि कछूआ संखु बजावै ॥२॥
घर घर मेण अरथात अपने अपने गोलकोण मेण इंद्रीआण जो चूही हैण सो परमेसर का
जस गाअुती हैण (कछूआ) चित संख बजावै है किआ परमेसर का चिंतन करता है असंख
परमेसर को चित कछु चिंतन करता है॥२॥
बंस को पूतु बीआहन चलिआ सुइने मंडप छाए ॥
ब्रहम बंस का जो जीव सो पवित्र हो कर जो (बीआ) दूसरा भाअु था तिस को हन
करके चला है सुंन जो अफुर मंडप असथान ब्रहम है तिसमेण (छाए) सिथर हूआ है॥
रूप कंनिआ सुंदरि बेधी ससै सिंघ गुन गाए ॥३॥