Faridkot Wala Teeka
हे भाई हम वा गुरमुख जन इस संसार को माइआ मोह मेण जलता हूआ देख कर
दौड़ कर हरि की सरण मैण पड़े हैण। अर गुर पूरे के आगे इह अरदास करते हैण कि हे
महाराज हमारे को गुरमुखता की बडाई देअु और इस जलते संसार से रख लेहु॥
रखि लेवहु सरणाई हरि नामु वडाई तुधु जेवडु अवरु न दाता ॥
सेवा लागे से वडभागे जुगि जुगि एको जाता ॥
हे गुरो हरी नाम की बडाई देकर अपनी शरण मेण रख लेवो किअुणकि तुमारे जैसा
बड़ा दाता और कोई नहीण है। जो आप की सेवा मेण लगे हैण सो बड़े भागोण वाले हैण और
तिनोण ने जुगोण जुगोण मेण एक आप ही को जाना है॥
जतु सतुसंजमु करम कमावै बिनु गुर गति नही पाई ॥
नानक तिस नो सबदु बुझाए जो जाइ पवै हरि सरणाई ॥३॥
हे भाई गुरोण से बिनां चाहे जत सत संजमादि करम भी करे परंतू शुभ गति नहीण
पाअुता है स्री गुरू जी कहते हैण। जो हरि सरण मेण दौड़ कर पड़ता है तिस को आप गुरू
(सबदु) ब्रहम का सरूप बुझाअुते हैण॥३॥
जो हरि मति देइ सा अूपजै होर मति न काई राम ॥
अंतरि बाहरि एकु तू आपे देहि बुझाई राम ॥
जो हरि मत देता है सोई जीअु को अुपजती है और अपनी कोई मत नहीण है तूं
ऐसे जान जो हरि अंतर बाहर एक है ऐसी बूझ हरी आप ही बुझाइ देता है॥
आपे देहि बुझाई अवर न भाई गुरमुखि हरि रसु चाखिआ ॥
दरि साचै सदा है साचा साचै सबदि सुभाखिआ ॥
जिनको आप समझा दिती है तिन को और बात नहीण भाई है अर जिस गुरमुख नै
इस हरि के गिआन का रस चाखिआ है सचे दुआरे सतसंग मैण सोई सदा सचा है। जिसने
साचे सबद को कहा है भाव जिसने गुर अुपदेस कौ जपा है॥
पंना ५७२
घर महि निज घरु पाइआ सतिगुरु देइ वडाई ॥
नानक जो नामि रते सेई महलु पाइनि मति परवाणु सचु साई॥४॥६॥
जिसको सतगुरू बडाई देते हैण तिसने (घरु) सरीर मेण ही (निज घरु) सरूप को
पाइआ है। स्री गुरू जी कहते हैण जो नाम मेण राते हैण सोई सच सरूप को पावते हैण अर
(साई) ओही मत प्रमाणीक है॥४॥६॥
वडहंसु महला ४ छंत
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
मेरै मनि मेरै मनि सतिगुरि प्रीति लगाई राम ॥
हे भाई मेरे मन ने मेरे (मनि) मंन करके भाव आपणे हितकारी जान के सतगुरोण
से प्रीती लगाई है॥
हरि हरि हरि हरि नामु मेरै मंनि वसाई राम ॥
इस से तिन गुरोण ने मन तन बांणी करके हरिनाम की प्रीति मेरे मन मेण बसाई
है॥