Faridkot Wala Teeka
जपि जीवहि से वडभागा ॥२॥
हरी की परेमा भगती मैण दासोण का चित लागा है से वडभागी दास नाम को जपके
जीवते हैण॥२॥
हरि अंम्रित बांणी गावै ॥
साधा की धूरी नावै ॥
हरी की अंम्रित सम बांणी को गावते हैण औ संतोण के चरनोण की धूरी मैण दास न्हावते
हैण॥
अपुना नामु आपे दीआ ॥
प्रभ करणहार रखि लीआ ॥३॥
जिस परमेसर ने आपणा नाम दीआ है तिस समरथ करणहार वाहिगुरू ने दासोण
को राख लीआ है॥॥३॥
हरि दरसन प्रान अधारा ॥
इहु पूरन बिमल बीचारा ॥
हरि का दरसन तिन दासोण के प्राणोण का आसरा है। इह निरमल पूरन तिनका
बीचार है॥ पुन: ऐसे बेनती है॥
करि किरपा अंतरजामी ॥
दास नानक सरणि सुआमी ॥४॥८॥५८॥
हे अंतहकरन के प्रेरक मेरे पर क्रिपा कर हे सुआमी हम दासतेरी सरण
हैण॥४॥८॥५८॥
सोरठि महला ५ ॥
गुरि पूरै चरनी लाइआ ॥
हरि संगि सहाई पाइआ ॥
हमकौ तो गुर पूरिओण ने अपनी चरनी लाइआ है इसते हरी जो संगी औ नित का
सहाई है सो हमने पाया है॥
जह जाईऐ तहा सुहेले ॥
करि किरपा प्रभि मेले ॥१॥
प्रभू ने क्रिपा करके हम मेल लए हैण इसी ते जहां जाते हैण तहां ही हम सुखी
हैण॥१॥
हरि गुण गावहु सदा सुभाई ॥
मन चिंदे सगले फल पावहु जीअ कै संगि सहाई ॥१॥ रहाअु ॥
सदा जो सोभनीक हरी के गुन हैण तिन को तुम गावो तिसते मन इज़छत सभ फलोण को
पावोगे॥ पुन: गुनोण का गावना जी के साथ सहाई होता है॥१॥
नाराइं प्राण अधारा ॥
हम संत जनां रेनारा ॥
हमारे प्राणोण का आसरा नराइं हूआ है किअुणकि हम संत जनोण के चरनोण की धूर
हूए हैण॥
पतित पुनीत करि लीने॥