Faridkot Wala Teeka

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राखहु राखनहार दइआला नानक घर के गोले ॥३॥१२॥
हे राखन हार दिआलू मुझ को सरब दुखोण से राख लेवो स्री गुरू जी कहते हैण हमआपके घर के (गोले) सेवक गुलाम हैण॥३॥१२॥
नामु जाप से बिना औरु साधनोण की विअरथता अुचारन करते हैण॥
धनासरी महला ५ ॥
पूजा वरत तिलक इसनाना पुंन दान बहु दैन ॥
पूजा औ ब्रत तिलक इसनान आदी करके पुंन दान का बहुत देंा भी करै॥
कहूं न भीजै संजम सुआमी बोलहि मीठे बैन ॥१॥
परंतू वहु सामी इन संजमोण मे कबी नहीण भीजता अरथात प्रसंन नहीण होता है
यदपि अनेक भांत मीठे बचनोण का भी बोलना करे॥१॥
प्रभ जी को नामु जपत मन चैन ॥
बहु प्रकार खोजहि सभि ता कअु बिखमु न जाई लैन ॥१॥ रहाअु ॥
हे भाई प्रभ जी का नामु जपणे ते ही मन मैण (चैन) अनंद होता है बहुत प्रकारोण
करके तिस को सभी खोजते हैण परंतू तिस की प्रापती कठन है और साधनोण करके लया नहीण
जाता है॥१॥
प्रशन: वहु साधन कौन है?
जाप ताप भ्रमन बसुधा करि अुरध ताप लै गैन ॥
अुतर॥ जाप और ताप से बाहोण को (अुरध) अूचे कर खड़े रहणा पंचागन का तपना
और (बसुधा) धरती मैण भ्रमणा इसादि साधनोण मैण जो (लै गैन) लागे हूएहैण वा (लै) कर
हठु भाव हठु धार कर (गैन) अकाश को चरन खड़े करने भाव कपाली आसनु करना॥
इह बिधि नह पतीआनो ठाकुर जोग जुगति करि जैन ॥२॥
पुना जोग की जुगत करनी औ जैन मारग मैण प्रविरतंे कर अरथात नाम जाप से
बिना पखंड सहत इन विधीओण के करने से ठाकर पतीआवता नहीण भाव से प्रसिंन नहीण
होता है॥२॥
अंम्रित नामु निरमोलकु हरि जसु तिनि पाइओ जिसु किरपैन ॥
नाम अंम्रित अर अमोलक हरी का जस सो तिसी ने पाइआ है जिस पर सतिगुरोण
की (किरपैन) ऐन क्रिपा भाव अती किरपा भई है॥
साधसंगि रंगि प्रभ भेटे नानक सुखि जन रैन ॥३॥१३॥
जिनोण को संतोण की संगत मैण (रंगि) प्रेम करने से प्रभू (भेटे) मिले हैण तिनोण जनोण
की आयू रूपी रात्री सुख साथ बीतती है॥३॥१३॥ स्री अकाल पुरख जी के सनमुख बेनती
करते हैण॥
धनासरी महला ५ ॥
बंधन ते छुटकावै प्रभू मिलावै हरि हरि नामु सुनावै ॥
जो संसारी बंधनोण से छुडावै औ हे प्रभू तेरे साथ मेरे कौ मिलावै पुना तेरे हरि
हरि नाम को सुनावै॥
असथिरु करे निहचलु इहु मनूआ बहुरि न कतहू धावै ॥१॥तिसी तेरे अचल सरूप मैण मेरे इस मन को इसथित करे जिसते पुना मेरा मन
संकलप विकलप मैण कबी धावै नहीण॥१॥

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