Faridkot Wala Teeka

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सरणी पावन नाम धिआवन सहजि समावन संगि ॥१॥ रहाअु ॥
हे ठाकुर जी तेरे जस कौ (आतम) मन के (रंगि) प्रेम करके गाइन करीए मन
कौ तेरी सरण मैण पावणे से हे नामी तेरे नाम का धिआवणा होता है तिसी कर सुभावक ही
तेरे सरूप साथ समावणा होता है॥
जन के चरन वसहि मेरै हीअरै संगि पुनीता देही ॥
हे वाहिगुरू तिन तेरे दासोण के चरन जब मेरे हिरदे मैण वसे तब तिन के साथ
मेरी देही पवित्र हो जावै॥
जन की धूरि देहु किरपा निधि नानक कै सुखु एही ॥२॥४॥३५॥
स्री गुरू जी कहिते हैण हे क्रिपा निध तिन अपने जनोण की चरन धूड़ी मेरे को क्रिपा
करकै दीजीए हम को इसी मैण ही सुख है॥२॥४॥३५॥
धनासरी महला ५ ॥
जतन करै मानुख डहकावै ओहु अंतरजामी जानै ॥
इह जीव जतन करकै और मानुखोण को (डहकावै) भ्रमावता है अरथात छलता है।
परंतू वुह करतब हे अंतरजामी तूं जानता हैण॥
पाप करे करि मूकरि पावै भेख करै निरबानै ॥१॥
निरबांोण के अरथात फकीरोण के भेख करके पाप कर करके पुनामुकर पड़ता है
भाव झूठ बोल कर कहिता है मैने पाप नहीण कीआ ॥१॥
जानत दूरि तुमहि प्रभ नेरि ॥
अुत ताकै अुत ते अुत पेखै आवै लोभी फेरि ॥ रहाअु ॥
हे प्रभू आप सरब के अती निकट रूप को इह जीव दूर जानता है इसी ते इह
जीव अुधर विसअहु वा पाप करमोण के करने मैण लोभ के फेर मैण आइआ हूआ इधर
अुधर देखता है भाव यहि इहु जानता है कि मेरे को कोई नहीण देखता है ऐसे जान कर
और की वसतू को अुठाइ लेता है॥
जब लगु तुटै नाही मन भरमा तब लगु मुकतु न कोई ॥
हे हरी जब लग सतिगुरोण के मिलाप ते इस जीव के मन का भ्रम तुटै नहीण तब
लग कोई मुकती नहीण होता है॥
कहु नानक दइआल सुआमी संतु भगतु जनु सोई ॥२॥५॥३६॥
स्री गुरू जी कहिते हैण हे सामी जिस पर आप दइआल भए हो सोई तेरा संत
भगत अुतम दास है॥२॥५॥३६॥
धनासरी महला ५ ॥
नाम जाप की महिमाण अुचारन करते हैण॥
नामु गुरि दीओ है अपुनै जा कै मसतकि करमा ॥
तिन अपने जनोण कौ सतिगुरोण ने नाम दीआ है जिनके मसतक मैण अुतमकरम
अरथात वडे भाग हैण॥
नामु द्रिड़ावै नामु जपावै ता का जुग महि धरमा ॥१॥
तिन का इस जुग मैण एही धरम है जो नाम का ही द्रिड़ावणा और नाम का ही
जपावणा करते हैण॥१॥

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