Faridkot Wala Teeka

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(कुचजी) सुभ अचार रहित का नाम है अरथात मंद अधिकारी॥
रागु सूही महला १ कुचजी
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
तिरीआ राज मैण जहां भाई मरदाने को मेढा बंाइआ है तहां अपने परथाइ कर
परमेसर से बेमुखोण का अचार दिखावते हैण॥
मुं कुचजीअंमावणि डोसड़े हअु किअु सहु रावणि जाअु जीअु ॥
मधम सखी अुतम पास हाल कहिती है मैण कुचजी हूं भाव मैण सुभ करमोण से रहित
हूं (अंमावणि) इतने दोश मेरे मेण हैण अरथात बहुत हैण जो समझाइ नहीण जा सकते मैण
किस प्रकार पती के आनंद को भोगंे जाअूण भाव अंतरमुख होके आनंद कैसे भोगूं॥
इक दू इकि चड़ंदीआ कअुंु जाणै मेरा नाअु जीअु ॥
परमेसर के पास तो एक से एक स्रेशट है अूहां मेरा नाम कौन जानता है भाव मैण
किस गिंती मैण हूं॥
जिनी सखी सहु राविआ से अंबी छावड़ीएहि जीअु ॥
जिन सखीओण ने पती (राविआ) भोगिआ भाव पाइआ है वहु अंबोण की छाअुण हेठ
बैठीआण हैण अरथात वहु सति संगति वा शुभ गुणों के आसरे शांती मैण हो रही हैण॥
से गुण मुं न आवनी हअु कै जी दोस धरेअु जीअु ॥
वहु गुण मेरे मैण नहीण आवते इसीसे मेरे को सांती नहीण मैण किस पर दोस धरूं
भाव सभ दोस तो मेरे मेण ही हैण॥
किआ गुण तेरे विथरा हअु किआ किआ घिना तेरा नाअु जीअु ॥
हे हरी मै कया कहि कर तेरे गुणों को विसथारूं हे परमेसर जी मैण किआ किआ
तेरा नाम लेअूण॥
इकतु टोलि न अंबड़ाहअु सद कुरबांै तेरै जाअु जीअु ॥
तेरे एक अुपकार वा पदारथ दीए को मैण नहीण पहुंचती भाव बदला नहीण दे सकती
इसी ते मैण सदा तेरे से कुरबान जाती हूं॥
सुइना रुपा रंगुला मोती तै माणिकु जीअु ॥
से वसतू सहि दितीआ मै तिन सिअु लाइआ चितु जीअु ॥
जो सुवरण औ चांदी मोती तथा माणक (रंगुला) अनंद के देंे वाली वसतू हैण हे
साहब जो तैने दीआ हैण मैण तिनोण से चितु लाया है॥
मंदर मिटी संदड़े पथर कीते रासि जीअु ॥
हअु एनी टोली भुलीअसु तिसु कंत न बैठी पासि जीअु ॥
मिटी के औ पज़थरोण के बनाए जो मंदर हैण मैण इन पदारथोण मेण ही भूल गई हूं
अपना जो तूं सुआमी हैण (तिस) तेरे पास ना बैठी भाव तेरे सरूप चिंतन का अनंद ना
लीआ॥
अंबरि कूंजा कुरलीआ बग बहिठे आइ जीअु ॥
सा धन चली साहुरै किआ मुहु देसी अगै जाइ जीअु ॥

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