Faridkot Wala Teeka

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पंना ८५९
सति नामु करता पुरखु निरभअु निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुर
प्रसादि ॥
रागु गोणड चअुपदे महला ४ घरु १ ॥
छे सबदोण कर अपने मनप्रती अुपदेश कर पुन: पहले सबद मैण ४ पअुड़ी मैण
परमेसर आगे बेनती करते भए हैण॥
जे मनि चिति आस रखहि हरि अूपरि ता मन चिंदे अनेक अनेक फल पाई ॥
हे मन जे हरी चैतंन के अूपर आस रखे तां मन इछत अनेक अनेक बहुत फल
पावै॥
हरि जाणै सभु किछु जो जीइ वरतै प्रभु घालिआ किसै का इकु तिलु न
गवाई ॥
जो जीआण मैण संकलप वरतता है सो हरी सभ कुछ जानता है पुना कमाइआ होइआ
करम किसे का हरी इक तिल मातर भी नहीण गवावता है॥
हरि तिस की आस कीजै मन मेरे जो सभ महि सुआमी रहिआ समाई ॥१॥
हे मेरे मन तां ते तिस हरी की आस कर जो सुआमी सभ महि समाइ रहिआ
है॥१॥
मेरे मन आसा करि जगदीस गुसाई ॥
जो बिनु हरि आस अवर काहू की कीजै सा निहफल आस सभ बिरथी जाई
॥१॥ रहाअु ॥
हे मेरे मन तूं आस करि (जगदीस) परमेसर की जो प्रिथवी का स्हामी है। जे बिना
परमेसर से होर किसे की आस करे सो आस तो निसफल होवेगी पुनह अवसथा भी तेरी
सभ विअरथ जावेगी॥१॥
जो दीसै माइआ मोह कुटंबु सभु मत तिस की आस लगि जनमु गवाई ॥जो माइआ के मोह मैण लगके सुखदाइक सभ कुटंब (दीसै) दीखता है तिस की
आस मैण लगके मत जनम को गवाई अरथात तिस से बचीण॥
इन कै किछु हाथि नही कहा करहि इहि बपुड़े इन का वाहिआ कछु न
वसाई ॥
इन संबंधीओण के कुछ (हाथि) वस नहीण है इह बीचारे किआ कर सकते हैण इन
का (वाहिआ) चलाया भाव कीआ हूआ कछू नहीण (वसाई) वस जोर कछ नहीण होता॥
मेरे मन आस करि हरि प्रीतम अपुने की जो तुझु तारै तेरा कुटंबु सभु छडाई
॥२॥
तांते हे मेरे मन हरी आपने प्रीतम की आस कर जो तुझ को तारे पुनह तेरा
कुटंब भी सभ जमादिकोण से छुडाइ देवे॥
जे किछु आस अवर करहि परमित्री मत तूं जाणहि तेरै कितै कंमि आई ॥
जो कुछ होर आस करे (परमित्री) माइआ वा देवतिओण की तो इह तूं मत जाण जो
तेरे किते कंम आवेगी अरथात नहीण आवेगी॥

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