Faridkot Wala Teeka

Displaying Page 2932 of 4295 from Volume 0

रामकलीकी वार राइ बलवंडि तथा सतै डूमि आखी
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
अुथानका गुर प्रताप सूरज मैण इअुण लिखी है॥ गुरू अरजन साहिब जी के पास दो
रबाबी रहिते थे राइ वडिआई का खताब था बलवंड का दूसरे का नाम सज़ता था जाती के
डुंम रबाबी थे सबद गाइन करते थे इक समेण अुनकी भैं का विवाह था अुनको रुपईआ
इक सौ गुरू जी ने दीआ कहिआ और भी देवेणगे सो गुसे होके घर मैण बैठ रहे सबद चौणकी
वेले न आए मनाअुंे को सिख भेजे औ तीसरी वार गुरू जी आप गए गुरू जी का आदर न
कीआ अुलटी निंदा करने लगे गुर नानक जी आद सभ गुरोण की निंदा करी कि अुह हमारे
ही गुरू बनाइ हूए थे मरदाने रुबाबी आदिकोण के सबद गावने से लोक पूजते थे असी
जिस सोढी पास सबद गावेणगे अुसी को गुरू बनाइ लेवाणगे तब गुरू जी वडिओण की निंदा ना
सहार सके तब सराप दीआ कि तुसीण फिट गए हो ऐसे कहि कर संगति मैण सुनाइ दीआ
कि डुंम फिट गए हैन जो हमारा सिख होवेगा अुनको मूंह ना लगावेगा औ अुनकी कोई
अरज ना करे जो करेगा अुस का मूंह काला करके खोते पर चड़्हाइके स्री अंम्रितसर जी के
शहिर मैण फेरांगे तब अुनके सरीर विगड़ गए कोई अुनको मूंह न लावे दीन होके लाहौर
भाई लज़धेपास गए भाई लज़धा खतरी परअुपकारी नाम करि प्रसिध था तिसने तिनोण की
अरज मनजूर करी काला मुख कर गधे पर चड़के लहोर औ स्री अंम्रितसर की गली गली
मैण फिरके गुरू जी के सनमुखु आके चड़े चड़ाए ने नमसकार करी गुरू जी ने हाल पहिले
ही सुना था अुठके गुरू जी ने अंक मैण ले लीआ कहा धंन भाई लज़धा परअुपकारी जे तूं
ऐमेण भी अरज करता तौ असीण तेरा कहिआ फेरते नहीण सो एहु तैने किआ कीआ तब लधे
ने अरज करी कि हजूर का हुकम तो मंनणा ही था सो पहिले मान लीआ अुस पर प्रसंन
होके अुन रबाबीआण को बखसिआ ते कहिआ जैसे गुरोण की निंदा करी थी तैसे अब अुसतती
करो तुमारा सरीर चंगा सुध हो जावेगा होर भी कोई ऐसे रोग वाला नेम प्रेम करके इस
वार को एक बरस पड़ै तौ अुस का रोगु निविरत होवेगा इसी को टिके दी वार भी कहिते
हैण जिसते गुरिआई का तिलक इस मैण बरनन कीआ है तब अुनोण ने प पअुड़ीआण मैण स्री
गुरू नानक जी औ स्री गुरू अंगद जी की मिली हूई अुसतती करी है औ तीन पौड़ीआण मैण
तीन गुरोण की सभ को प्रतख कह कर अुसतती करी है॥
नाअु करता कादरु करे किअु बोलु होवै जोखीवदै ॥
दे गुना सति भैं भराव है पारंगति दानु पड़ीवदै ॥
जिसु गुरूनानक जी के नाअुण कादर ने करता करे हैण भाव अपने तुल कीए हैण वा
जिसका नाअुण करता कादर अरथात सरब सकतीमान परमेसर कर देवै तिनोण के बोल का
किस प्रकार (जोखीवदै) जोखणा होवै वा बोल करके तिनका कैसे जोखणा होवै वा जो तिनांके
बोलोण का कैसे (खीवदै) सहारना होवै वा खै कैसे होवै॥ दैवी संपती के जो सतिआदक गुण
हैण इहु जिनके भ्राता हैण औ करणा मैत्री मुदता अपेखिआ इहु भैंां हैण (पारंगति दानु)
ऐसे सतिगुरोण से सिख (परंगति) मोखदान को (पड़ीवदै) पावते हैण॥
नानकि राजु चलाइआ सचु कोटु सतांी नीव दै ॥
स्री गुरू नानक साहिब जी ने ऐसा राज चलाइआ है जो सचे नाम का कोटु कीआ
है और (सतांी) सहित बल के सरधा भगती कीनी वा दिती भाव (राजु) प्रकास अरथात
गिआन दुआरे सैण सरूप मैण इसथित होंे के वासते भगती की मुखता रखी है॥

Displaying Page 2932 of 4295 from Volume 0