Faridkot Wala Teeka

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मारू वार महला ३
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
सलोकु म १ ॥
अनअधिकारी के अुपदेस की निसफलता औ अधकारी को सफलत दिखावते हैण॥
विणु गाहक गुणु वेचीऐ तअु गुणु सहघो जाइ ॥
जे बिनां गाहक से गुणों को बेचीए तो गुण ससता जाता है॥गुण का गाहकु जे मिलै तअु गुणु लाख विकाइ ॥
जे अुपदेस गुणा का गाहक जगासू मिल जावै तो गुण लखीण बिकता है भाव
अधकारी गुरोण को सरबंस अरपन कर देता है॥
पंना १०८७
गुण ते गुण मिलि पाईऐ जे सतिगुर माहि समाइ ॥
जे सतिगुरोण का अुपदेस रिदे मैण समावै तौ साधना रूप गुण साथ मिल के गिआन
गुण पाईता है॥
मुोलि अमुोलु न पाईऐ वणजि न लीजै हाटि ॥
सरधा से बिनां अमोल गिआन किसे मोल करि नहीण पाईता औ किसी हाट ते भी
नहीण खरीदिआ जाता है॥
नानक पूरा तोलु है कबहु न होवै घाटि ॥१॥
स्री गुरू जी कहते हैण गिआन विचार रूप तोल पूरा है किसी अपदा करि कबी घट
नहीण होता है॥१ ॥ अब मौली के द्रिसटांत करि तीन प्रकार के पुरस कहते हैण॥
म ४ ॥
नाम विहूंे भरमसहि आवहि जावहि नीत ॥
इकि बांधे इकि ढीलिआ इकि सुखीए हरि प्रीति ॥
जब मौली रंगीती है तब रंगंे के वकत एक जगा ते कसि करि बंधीती है सो वहु
सुपैद रहती है जिथोण ढिली बंधीतीहै तहा समान ही रंग चड़ता है जो खुली जागा है सो
सुरख होती है तैसे बंधनो करि बंधे हूए अगिआनी हैण सो तो कोरे हैण तिन को प्रमेसर का
रंग नहीण चड़ता है इक (ढीलिआ) ढिलिआण बंधनां वाले अरथात वहु जगासी हैण तिन को
रंग चड़ता है परंतू थोड़ा, इक हरी की प्रीत करि जो सुखी हैण जिन को गाड़ा रंग चड़िआ
है सो गिआनी आतम अनंदी हूए हैण पूरब जो कथन कीए अगिआनी सो नाम से बिनां
भ्रमते हैण पुना वही वारंवार जनमते मरते हैण॥
नानक सचा मंनि लै सचु करणी सचु रीति ॥२॥
स्री गुरू जी कहते हैण जिसने सचा अुपदेस मंनन कर लीआ है तिस की सभ करनी
सच रूप है और तिस की बिवहारक म्रियादा भी सची है वा हे भाई सचा जो है तूं जिस ळ
मंनन कर लै सची म्रियादा सहत सची करनी कर ॥२॥
पअुड़ी ॥
गुर ते गिआनु पाइआ अति खड़गु करारा ॥
दूजा भ्रमु गड़ु कटिआ मोहु लोभु अहंकारा ॥

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