Faridkot Wala Teeka

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रागु मारू बांणी कबीर जीअु की
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
कबीर जी करम कांडी पंडत को डांट कर अुपदेस करते हैण॥
पडीआ कवन कुमति तुम लागे ॥
हे पंडत कौन कुमती मैण तुम लागे हो॥
बूडहुगे परवार सकल सिअु रामु न जपहु अभागे ॥१॥ रहाअु ॥
हे अभागे तुम राम नहीण जपते इसी ते तुम सारे परवार के समेत ही संसार
समुंद्र मैण डूब जावोगे भाव तुमारा जनम मरन नहीण छूटेगा॥ जे कहे हमने बेद पुरान पड़े
हैण किअुण डूबेणगे? तिस पर कहते हैण॥
बेद पुरान पड़े का किआ गुनु खर चंदन जस भारा ॥
धारना बिनां केवल बेद पुरान पड़ेका किआ (गुनु) लाभ है वहु तां ऐसे है जेसे
गधे के अूपर चंदन का भार लाद दीआ हो तौ तिस को किआ गुन औ गात है कोई सांती
नहीण हो जानी॥पंना ११०३
राम नाम की गति नही जानी कैसे अुतरसि पारा ॥१॥
तैने राम नाम जपने की तौ (गति) तरां नहीण जानी है इसते तूं कैसे पार
अुतरेगा॥१॥
जीअ बधहु सु धरमु करि थापहु अधरमु कहहु कत भाई ॥
तब पंडत ने कहा हम जग करते हैण इस कर स्रेसट हैण तिस पर कहते हैण॥ जगोण
मैण जीवाण को मारते हो तिस को (सु) अुतम धरम करके अपने रिदे मैण सथापन करते हो तां
ते हे भाई अधरम किसको तुम कहते हो भाव अधरम एही है॥
आपस कअु मुनिवर करि थापहु का कअु कहहु कसाई ॥२॥
अपने को स्रेसट मुनीसर करि थापते हो परंतू कसाई किसको कहते हो भाव वज़डे
कसाई आप ही हो॥
मन के अंधे आपि न बूझहु काहि बुझावहु भाई ॥
आप तो तुम मन के अंधे हो किअुणकि आप कुछ समझते नहीण हे भाई और तुम
किसको समझावोणगे॥
माइआ कारन बिदिआ बेचहु जनमु अबिरथा जाई ॥३॥
माइआ के वासते तुम विदिआ बेचते हो किअुणकि पदारथ लीए बिनां पड़ावते
नहीण इसते तुमारा जनम बिअरथ जाता है॥३॥ 'अबिरथा' देस भासा कर गुरू जी ने लिख
दीआ है वासतव ते 'बिअरथा' पदु है॥नारद बचन बिआसु कहत है सुक कअु पूछहु जाई ॥
नारद जी का बचन है अर बिआस जी भी कहते हैण अर सुकदेव जी से भी जाइ
पूछहु अरथात भागवत पड़ देखो सो भी ऐसे कहते हैण॥
कहि कबीर रामै रमि छूटहु नाहि त बूडे भाई ॥४॥१॥
स्री कबीर जी कहते हैण हे भाई राम को अुचारन करोगे तो छुटना होवैगा नहीण तो
अपने आप को डूबे ही जानोण॥४॥१॥

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