Faridkot Wala Teeka

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पंना ११२५
रागु भैरअु महला १ घरु १ चअुपदे
सति नामु करता पुरखु निरभअु निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुर
प्रसादि ॥
स्री गुरू नानक देव जी भैरअु राग के प्रारंभ विखे स्री अकाल पुरख परमेसर की
अुसतती रूप अंगलाचरन करके पुना बेनती अुचारन करते हैण॥
तुझ ते बाहरि किछू न होइ ॥हे हरी तेरे आगा ते बाहर कछु भी नहीण होता है॥
तू करि करि देखहि जाणहि सोइ ॥१॥
तूं आप ही जीवोण को रच रच करके देख रहा हैण पुन: सो तूं अुनके करतबोण को
जाण रहा हैण॥१॥
किआ कहीऐ किछु कही न जाइ ॥
जो किछु अहै सभ तेरी रजाइ ॥१॥ रहाअु ॥
हे भगवन यह जीव आपकी महिमाण को कया कथन करे मेरे से वरनन नहीण हो
सकती जो किछु द्रिस आवता (अहै) है सो सभ तेरी आगिआ विच है॥
जो किछु करणा सु तेरै पासि ॥
इस वासते बेनती आदिक का करना तेरे ही पास बनता है वा जो कुछ हमारा
करतब है सभ तेरे पास ही है भाव तेरे से गुझा नहीण है॥
किसु आगै कीचै अरदासि ॥२॥
तेरे बिनां और हम किसके आगे बेनती करेण॥२॥
आखणु सुनणा तेरी बांणी ॥
मैण तो तेरी ही बेद रूप वा राम नाम रूप बांणी को (आखणु) जपना अर सुनणा
करता हूं॥
तू आपे जाणहि सरब विडांी ॥३॥
हे (विडांी) वज़डे वा असचरज रूप तूं मेरी सरब प्रकार स्रधा को आपेही जानता
हैण॥३॥
करे कराए जाणै आपि ॥
आपे आप ही ब्रहमादिकोण को (करे) रचके पुन: तिनोण ने स्रिसी को अुतपंन
(कराए) करावता हैण॥
नानक देखै थापि अुथापि ॥४॥१॥
स्री गुरू जी कहते हैण हे भगवन तुम आप ही अुतपती और लयता की लीला को
देख रहा हैण॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
रागु भैरअु महला १ घरु २ ॥
स्री गुरू नानक देव जी गुरां की अुसतती और नामु की महिमाण बरनन करते हैण॥

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