Faridkot Wala Teeka

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कबीर जी को एक राजा ने आकर कहा कि हमारे से जितना रुच हो धन लीजीए
अर नाम का अुपदेसु कीजीए तिसु प्रती अुपदेसु अरु परमेसर दे सनमुख कहते हैण॥
भैरअु बांणी भगता की ॥
कबीर जीअु घरु १ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
इहु धनु मेरे हरि को नाअु ॥
गांठि न बाधअु बेचि न खाअु ॥१॥ रहाअु ॥
हे हरी आप का जो नामु है एह मेरे पास धनु है इस को ना तो गंढ बांध कर
अरथात छपा करके रखता हूं और ना बेच कर खाता हूं भाव यहि कि अधिकारी को नाम
धन देंे मैण मुझ को क्रिपनता नहीण और अन अधिकारी के धन के लोभ करके देता नहीण
हूं॥
नाअु मेरे खेती नाअु मेरे बारी ॥
भगति करअु जनु सरनि तुमारी ॥१॥
हे भगवन तेरा नाम ही मेरे को खेती है और नामु ही जिस मैण फूल तरकारी निपजै
सो (बारी) बगीची है मैण दास तुमारी ही भगती करूं और तुमारी ही सरनागत रहूं॥
नाअु मेरे माइआ नाअु मेरे पूंजी ॥
तुमहि छोडि जानअु नही दूजी ॥२॥
नाम ही मेरे पास माइआ है अर नाम की ही मेरे पास (पूंजी) रास है तेरे को
छोड कर और दूसरी बात को नहीण जानता हूं॥२॥
नाअु मेरे बंधिप नाअु मेरे भाई ॥
नाअु मेरे संगिअंति होइ सखाई ॥३॥
मेरे को नाम ही सनबंधी रूपु है और नाम ही मेरे को भ्राता वत पयारा है नाम ही
हमारे संग होके अंत को (सखाई) मित्रताई करन हारा है॥३॥
माइआ महि जिसु रखै अुदासु ॥
कहि कबीर हअु ता को दासु ॥४॥१॥
माया विखे हे भगवन जिसको तूं (अुदासु) तयागी राखता हैण स्री कबीर जी कहते
हैण तिस का दास हूं॥४॥२॥
नांगे आवनु नांगे जाना ॥
कोइ न रहिहै राजा राना ॥१॥
हे भाई प्राणी का (नांगे) नगन ही संसार मैण आवना हूआ है और नगन ही सभ
चले जाना है संसार मैण कोई राजा सिथर नहीण रहेगा॥१॥
पंना ११५८
रामु राजा नअु निधि मेरै ॥
संपै हेतु कलतु धनु तेरै ॥१॥ रहाअु ॥
हे राजा मेरे तो राम ही नअुनिधि रूप है (संपै) संपदा और (कलतु) इसत्री का
(हेतु) मोह इह तेरे पास धनु है॥

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