Faridkot Wala Teeka

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रागु सारंग बांणी भगतां की ॥
कबीर जी ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
कहा नर गरबसि थोरी बात ॥
हे पुरस थोड़ी बात पुर (कहा) किस वासते गरबु करता हैण॥
मन दस नाजु टका चारि गांठी ऐणडौ टेढौ जातु ॥१॥ रहाअु ॥
दसक मण अनाज और चारक (टका) रुपए पले हो गए ते (ऐडौ) आकड़ कर टेढा
भाव हंकारी हो कर कुमारग मैण चलंे लग जाता हैण॥
बहुतु प्रतापु गांअु सअु पाए दुइ लख टका बरात ॥
जेकर बहुतप्रताप हूआ तौ सौ गाअु पाइ लीए और दो इक लख रुपा (बरात)
आमदन ब्रसदी वा दुमाहे दी नौकरी हो गई॥
दिवस चारि की करहु साहिबी जैसे बन हर पात ॥१॥
सो यिह चार दिन के लीए सरदारी करते हो कैसे करते हो जैसे बन मैण पते चार
दिन हरे रहते हैण वा जैसे पते अूपर का जल गिर पड़ता है तैसे पदारथ छिन भंगर
है॥१॥
ना कोअू लै आइओ इहु धनु ना कोअू लै जातु ॥
रावन हूं ते अधिक छत्रपति खिन महि गए बिलात ॥२॥
इस धन को ना तो कोई लै करके आया है और ना कोई साथ ही लै जाता है रावण
से भी अधिक छतरपती छिन विखे नसट हो जाते भए हैण॥२॥ जे कहेण कोई संसार मैण
इसथित भी रहिता है तिस पर कहिते हैण॥
पंना १२५२
हरि के संत सदा थिरु पूजहु जो हरि नामु जपात ॥
हरीके संत जो रात्रि दिन नाम के जपते हैण सो सदीव इसथित रहिते हैण तां ते
तिस को पूजो॥
जिन कअु क्रिपा करत है गोबिदु ते सतसंगि मिलात ॥३॥
जिनको गोबिंद जी किरपा करते हैण सो पुरस सतसंग मैण मिलते हैण॥३॥
मात पिता बनिता सुत संपति अंति न चलत संगात ॥माता पिता इसत्री पुत्र (संपति) धन पदारथादि अंतको कोई संग नहीण चलता
है॥
कहत कबीरु राम भजु बअुरे जनमु अकारथ जात ॥४॥१॥
तांते स्री कबीर जी कहिते हैण हे नर बावरे रामको भज मानुख जनमु (अकारथ)
बरथ चला जाता है॥४॥१॥
राजास्रम मिति नही जानी तेरी ॥
तेरे संतन की हअु चेरी ॥१॥ रहाअु ॥
तेरी राज असरम राजधानी की म्रियादा जानी नहीण जाती तेरे संतोण की मैण (चेरी)
दासी हूं॥ वहु राजधानी कैसी है। सो कहिते हैण॥

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