Faridkot Wala Teeka
जब इस प्रकार हरि लाल औ हरि क्रिशन पंडतोण का सताहठ सलोक स्री गुरू जी ने
अुपदेस कर मोह नसट कीआ तब तिनोण ने प्रसंन हो कर बेनती करी कि आप क्रिपा कर
कुछ और अंम्रत रूप कथा को सुनावो जिस से देह अधिास दूर होइ स्री गुरू अरजन
साहिब जी तिनोण को अति प्रेमवान जान कर देह की मलीनता औ संतोण की महिमा लखावते
हूए गाथा नाम बांणी अुचारन करते हैण॥
महला ५ गाथा
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
करपूर पुहप सुगंधा परस मानुख देहं मलींं ॥
हे भाई (भरपूर) मुसकपूर औ (पुहप) फूलोण औ होर सुगंधी वाली वसतू इस
मानुख की देह को सपरसकरके मलीन हो जातीआण हैण॥
मजा रुधिर द्रगंधा नानक अथि गरबें अगानणो ॥१॥
पुना जो (मजा) मिझ और (रुधिर) रकत औ दुरगंधका करके पूरन है स्री गुरू जी
कहिते हैण इह अगिआनी जीव इस ऐसे मलीन सरीर को पाइकर (अब) अुपरांत भाव
फेर भी (गरबें) गरब करता है भाव येह इस मलीन सरीर का हंकार करना नहीण
चाहीए॥ प्रमान स्री गुरू ग्रंथ साहिब जी यथा-बिसटा असति रकति परेटे चाम। इस
अूपर ले रखिओ गुमान॥
परमाणो परजंत आकासह दीप लोअ सिखंडंह ॥
यदपि इह जीव प्रमाणूओण प्रयंत सूखम रूप धारके सिधी के बल करके अकास मैण
जो सात लोक हैण तिन मैण और दीपोण जो खंडोण सहत है॥
गछें नैं भारें नानक बिना साधू न सिधते ॥२॥
(गछें) जाइ कर नेत्रोण के फुरकंे मैण फेर आवै स्री गुरू जी कहिते हैण तौ भी संतोण
की संगति से बिना जीव कबी मोख को प्रापति नहीण होता है॥२॥
जाणो सति होवंतो मरणो द्रिसटें मिथिआ ॥
हे भाई म्रित होंे को सत जाणोण किअुणकि जो नाम रूप जगत द्रिसट आवता है सो
सभ मिथिआ रूप है॥
कीरति साथि चलथो भणंतिनानक साध संगें ॥३॥
स्री गुरू जी कहिते हैण जो संतोण की संगत करके गोपाल का कीरतन अरथात जस
अुचारन करना है सो साथ चलता है भाव यही सत है॥३॥
माया चित भरमें इसट मित्रेखु बांधवह ॥
इस माया ने इसट मित्र बांधवो (खु) बीच अरथात इनोण के मोहि मैण जीवोण का
चित भ्रमाइ दीआ है॥
लबधं साध संगें नानक सुख असथान गोपाल भजंं ॥४॥
स्री गुरू जी कहिते हैण तां ते हे भाई संतोण की संगति कर गोपाल का भजन करने
ते जीव को सुखोण का असथान सै सरूप (लभधं्ह) प्रापति होता है॥४॥
मैलागर संगें निमु बिरख सि चंदनह ॥
निकटि बसंतो बांसो नानक अहं बुधि न बोहते ॥५॥