Faridkot Wala Teeka

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स्री गुरू अरजन साहिब जी मौ नाम नगर मैण बिवाह के समेण लड़कीआण को इह छंद
सुनाए हैण इस छंद का नामु फुनहे है इस फुनहे छंद मैण स्री गुरू अरजन साहिब जी जीवोण
को बहुत प्रकार से अुपदेश अुचारन करते हैण प्रिथम स्री प्रमेसर जी के आगे बेनती करते
हैण॥
फुनहे महला ५
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
हाथि कलम अगंम मसतकि लेखावती ॥
हे मन बांणी से अगंम वाहिगुरू तेरे हाथ मैण हुकम रूप जो कलम है सोई सरब
जीवोण के मसतक मैण लेखोण को लिखती आवती है भाव येह सरब लेख तेरे हुकम कर लिखे
जाते हैण॥
अुरझि रहिओ सभ संगि अनूप रूपावती ॥
हे अनूप रूप वाले तूं सरब के साथ (अुरझि) मिल रहा हैण भाव येह तूं सरब के
साथ अभेद हो रहा हैण॥
अुसतति कहनु न जाइ मुखहु तुहारीआ ॥
तांते मेरे मुख से तुमारी अुसतती कथन नहीण करी जाती अरथात तेरी अुपमा
बिअंत हैण॥मोही देखि दरसु नानक बलिहारीआ ॥१॥
तेरे दरसन को देख करके मेरी बुधी मोहित भई है तिसी ते मैण तुझ पर
बलिहारने जाता हूं॥१॥
संत सभा महि बैसि कि कीरति मै कहां ॥
संतोण की सभा मैण बैठ करके (कि) जो कीरती है तिस को मैण अुचारन करोण॥
अरपी सभु सीगारु एहु जीअु सभु दिवा ॥
और साधन रूपी सभी सिंगारां को भी अरपण करूं और एह सभ अपना जीव भी
देवोण भाव येह सरब अवसथा तिस की सेवा मैण बतीत करूं॥
आस पिआसी सेज सु कंति विछाईऐ ॥
पुना तिस के दरसन की आसा कर पिआसी होइकर (कंत) पतीके मिलने वासते
सरधा रूपी सेहजा (विछाईऐ) विछावणी करीए॥
हरिहां मसतकि होवै भागु त साजनु पाईऐ ॥२॥
परंतू तौ बी (हरिहां) हे भाई वा छंद की रीत मसतक मैण पूरन भाग होवै तब
तिस वाहिगुरू साजन को पाईता है॥२॥
सखी काजल हार तंबोल सभै किछु साजिआ ॥
(सखी) हे भाई संत जनोण समाधी रूप कजल हरि हरि नाम अुचारन रूपी हार औ
मिठे बचन करने येह (तंबोल) पानोण का बीड़ा इतादीसंपूरन करतब भी कीआ॥
सोलह कीए सीगार कि अंजनु पाजिआ ॥
दस इंद्रै औ पांच प्राण एक मन इन सोलां को आपने वस करन रूपी सोलां सीगार
कीए हैण पुना शासत्रोण का गिआन रूपी (कि) जो सुरमा है तिस को बुधी नेत्रोण मैण (पाजिआ)
मिलाइआ है कजल से सुरमा भिंन होता है॥

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