Faridkot Wala Teeka

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पंना १४१०
सति नामु करता पुरखु निरभअु निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुर
प्रसादि ॥
सलोक वारां ते वधीक ॥
महला १ ॥
पहिले वारां सलोकोण ते बिनां पअुड़ीआण मात्र थीआण स्री गुरू अरजन साहिब जी ने
स्री गुरू ग्रंथ साहिब जी की बीड़ रचन समेण पअुड़ीओण के साथ सलोक मिलाइ करके वारां
लिखाईआण हैण तिन वारोण पीछे जो और सलोकरहे सो ईहां एक जगा पीछे लिख दीए हैण
कई सलोक ईहां वारां के बीच के भी हैण परंतू अखर वा लग मात्र का भेद है यथा-मनहु
जि अंधे कूप वा घूप पाठ है अब पहिली पातिसाही के लिखते हैण। स्री गुरू नानक देव जी
कुरखेत्र मैण गए अूहां पटने के राज पुत्र ने हरन मारकर गुरू जी की भेटा करी तब तिस
को राज का वर दीआ अुसी मास के रिनणे से पंडित लोकोण साथ चरचा करके नाम जपाया
मास के देगचे बीच से तसमई कर दिखाई तब संपूरन गुरू जी के सिख भए पुना जब
सतिगुर समाण पाइ कर अुस राज पुत्र के राज मैण गए तब अुह राजा अपनी माता और
रांी संयुकत आइआ अर नमसकार करी तिस राजे की माता ने देखा कि मेरी सुनुखा ने
निंव करके नमसकार नहीण करी तब अुह अपनी सुनुखा के साथ प्रशनोतर करती भई सोई
सतिगुरू जी दिसटांत दासटांत दोनोण प्रकार कर अुचारन करते हैण वा संप्रदाई सिंगलादीप
मैण जब दूजी वार गए हैण तब रानी सुनुखा साथ आई तिस प्रथाइक एह सलोक हूए॥
अुतंगी पैओहरी गहिरी गंभीरी ॥
ससुड़ि सुहीआ किव करी निवणु न जाइ थंी ॥
हे (अुतंगी) अुतम अंगोण वाली सतिगुर के (पै) चरनोण पर (ओहरी) ओहड़ भाव
झुक के निमसकार कर किअुणकिसतिगुरोण को मज़था टेकंे करके तुूं (गहिरी) गंभीरी होवेणगी
तब आगे से अुह सुनुखा कहिती है। हे (ससुड़ि) ससू मैण स्री गुरू जी को (सुहीआ)
निमसकार किस प्रकार करोण करड़े थंोण के कारण से निंविआण नहीण जाता है। तब सास
कहिती है री सखीए सुण॥
गचु जि लगा गिड़वड़ी सखीए धअुलहरी ॥
से भी ढहदे डिठु मै मुंध न गरबु थंी ॥१॥
जिन (गिड़वड़ी) अूचे परबतोण सम (धअुलहरी) मंदरोण को जो (गच) गाच लगिआ
होइआ भाव से खरे चूने कर खचत हूए हूए थे अुह मंदर भी मैने गिरते देखे हैण तां ते
हे (मुंध) इसत्री इन थंोण का (गरबु) हंकार ना कर। अब दासटांत मैण दूसरा अरथ
कहते हैण:-
सतिगुरोण का सिख प्रती कथन है। हे जगासी रूप इसत्री हरी के चरनोण पर झुक
किअुणकि तिस से तेरी बुधी गहरी गंभीरी होइगी जगासी का कथन है हे सतिगुरो मैण
अविदिआ रूप सज़स के अधीन हो रहा हूं वा (ससड़) संसिओण मैण पड़ रहा हूं अर थंी भाव
पदारथोण करके निंविआण नहीण जाता है। तां ते मैण किस प्रकार निमसकार करूं॥

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