Faridkot Wala Teeka
निजानंद सरूप है तिस को सहजे ही पावोगे॥ फिर तुम को जनम मरण का फेरा नहीण
होइगा। तां ते इस प्रकार बेनती करो॥
अंतरजामी पुरख बिधाते सरधा मन की पूरे ॥
नानक दासु इहै सुखु मागै मो कअु करि संतन की धूरे ॥४॥५॥
हे अंतरजामी हे बिधाता पुरख मेरे मन की सरधाको पूरन करो स्री गुरू जी कहते
हैण मैण दासु एही सुख माणगता हूं जो मेरे को तिन संतोण के चरनोण की धूरी प्रापति करि
दीजीए भाव एहि कि साध संगति मेरे से न छुटे॥४॥५॥