Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) १६
राशि पहिली चज़ली
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
अथ श्री गुर प्रताप सूरज ग्रिंथ*
प्रिथम रासि लिखते
।अंसू मंगला चरण॥
अथ = हुण। देखो श्री नानक प्रकाश पूरबारध, अधाय पहिले दा आदि।
लिखते = लिखदे हां।
अरथ: हुण (अरथात श्री गुर नानक प्रकाश तोण अुप्राणत) श्री गुर प्रताप सूरज
(नामे) ग्रंथ लिखदे हां (ते अुस दी) पहिली रासि (तोण आरंभ करदे हां)।
दोहरा: तीनो काल सु अचल रहि, अलणब सकल जग जालि।
जाल काल लखि मुचति जिसि, करता पुरख अकाल ॥१॥
तीनोकाल = बीत चुका, बीत रिहा ते आअुण वाला। भूत भविज़खत,
वरतमान तिंने समेण, भाव सदा, हमेशां।
अचल-अ+चल = जो ना चले, जो सदा इक रस रहे, (देखो श्री गुर नानक
प्रकाश पूर: अधा: १, अंक ३, नितनयो पद, अुस दा भाव ते तीनोकाल सु
अचल रहि दा भाव इको है।
अलब = आश्रा, टेक,।संस: आलणब॥++ ।
जगजालि = जगत रूपी फाही। जाल फैला के तांीणदा है, इस करके जगजाल
दी मुराद है:- जगत दा फैलाअु या पसारा। (अ) अुह भुलेवा जो प्राणीआण ळ मोह
विच भ्रमा रिहा है, माया। (ॲ) टिकाव, ठहिराव।
जालकाल = काल दी फाही। किअुणकि जाल विच पंछी फाही दे हन। (अ) काल
दा जाल, काल दा पसारा। इह जगत काल दा पसारा है, इस करके जालकाल।
(ॲ) कलिजुग दी फाही। काल दा अरथ काल बी है, कलजुक बी काला है।
लखि = जाण लिआण।
मुचति = छुटदे हन। ।संस: मुच = छुटंां, मुच तोण मुणचति॥।
अरथ: जो सदा इकरस रहिणदा है, (पर सदा इक रस ना रहिं वाले) जगत दे
पसारे दा आसरा है, (फिर) जिसळ जाण लिआण काल दी फाही छुट जाणदी है,
(अुसदा नाम है) करता पुरख अकाल।
*लगपग सारे लिखती नुसखिआण विच इहो पाठ मिलदा है। ग्रिंथ। विशेश-कवी जी दे सै लेखंी
लिखत पज़त्रिआण तोण वी इस पद दे इहो पदजोड़ सही होए हन। इस ग्रंथ दा इह नाम ते इस दे
भागां दा रासां, रुतां ते ऐन आप ने किअुण नाम दिज़ता, इस दा कारण कवी जी आप अज़गे जाके
रुत १ अज़सू १ दे अंक १५ तोण १८ विच दज़स रहे हन।++ जिस तोण कोई शै टुरे, जो किसे शै दे प्रकाश या प्रगटताई दा मूल होवे।