Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) १५२

आतम अहै काल को काला१।
जग को लखि कै सुपन समानै।
वरण२ आश्रमनि क्रिया सु ठानै* ॥७॥
ब्रहमगान को निति अज़भासहि।
तन हंता लखि झूठि बिनासहि।
इमि ही क्रिशन कीन अुपदेश+।
अरजन धारो रिदे बिशेश ॥८॥
वरण धरम रण करहु महाने।
आतम साच कूड़ तन जाने।
दीजहि दान सुकरम३करीजहि।
तन बिनसन नहिण संसा कीजहि ॥९॥
देश, काल, वसतू मिल तीन।
तब हुइ कायां प्रान बिहीन।
पूरन बय को४ समां सु आवहिण।
जिस थल देहि गिरहि सो पावहि५ ॥१०॥
त्रितीए जिस ते होवनि घात६।
बाधि कि आयुधादि मिलि जाति७।
इन तीनहु बिन इकठे होइ।
प्रान हान किमि नहिण किस जोइ८ ॥११॥
बिन त्रै मिले काल रखवारो।


१काल दा नाश करन वाला, भाव आतमा अकाल है।
२जात।
*जो कंम किसे दा करना धरम है, अुस विच ब्रहम गान दा अभिआस जारी रखे। तदोण वरणां दी
वंड मूजब कंम करदे सन, हुण आपो आपणी चों मूजब करदे हन। कवि जी दी मुराद केवल इह
है कि कार करदिआण ब्रहम गान विच रहे। अंक ९ विच सपज़शट हो जाणदा है कि मुराद किरत या
किज़ते तोण है। आश्रम बरन दी वंड दा खंडन अज़गे अंसू १३ अंक १५, १६ ते १७ विच कवि जी
आप ही दज़सदे हन।
+गुरू जी दे अुपदेश आपणे अनुभव दे हन। अवतार शासत्राण दा मुथाज नहीण हुंदा। अुस दा
गिआन सुते संपूरन गान हुंदा है। द्रिशटांत मात्र तोण भाव लैंा चाहीए।
३स्रेशट करम।४आयू दे पूरे होण दा।
५जिस थावेण गिरना (मरना) है देह अुह थां प्रापति कर लैणदा है।
६जिस नाल नाश होणा है।
७दुज़ख कि शसत्र आदिक (अुह) मिल जाणदा है।
८किसे दे प्राण दी हानी नहीण देखी।

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