Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ४२
रज़खंवाले हन, ते राज ताज सुख दे सारे सामानां दे देण वाले हन, तांते
मेरा कारज ग़रूर निरविघन सिरे चड़्हाअुणगे।
सागर गंभीर पर प्रेम ते अछोभ नहिण विच कवी जी दा सागर दी पर-पीड़ा तोण
पीड़ति ना होण वाली गंभीरता वल इशारा है, जद कोई मनुख जाण बेड़ा डुबे
अुन्हां दे दुज़ख दा अुसळ कोई छोभ नहीण हुंदा; पर गुरू जी पर-पीड़ा देखके
द्रवदे हन। सागर वाणू गंभीर तां हन पर अुस वाणू भावहीन नहीण हन।
१३. इश-दसो गुरू साहिबाण दा-मंगल।
सैया: इक जोति अुदोतक रूप दशो शुभ
होति अंधेर गुबार अुदारा।
जग मैण सु प्रकाश चहो खरिबे
अुपदेश दियो सिज़ख भे नर दारा।
परलोक सहाइ अशोक करे
इस लोक मैण राणक करे सिरदारा।
गुर ब्रिंदन के पग सुंदर को
अरबिंद मनो अभिबंद हमारा ॥१९॥
अुदोतक = प्रकाश करन वाले। प्रकाशक। ।संस: अुदोत = प्रकाश। क =
करन वाले॥
अंधेर = हनेरा, भाव अुस ग़ुलम तोण है जो परजा दे अुज़ते हुंदा सी। इह
इक मुहावरा है। हुण तक बी जद किते ग़ुलम होवे तां कहिणदे हन-हन्हेर हो गिआ।
कोई ग़ुलम करे तां कहिणदे हन-हन्हेरमारिआ सू। ।यथा- बाझ गुरू अंधेर है खहि
खहि मरदे बहुबिधि लोआ। ।भा: गुर: वा: १, पौ: २२॥
ुबार = गरदे दे अुडार होण नाल जो हन्हेर पैणदा है।
इस दी मुराद अज़गान दे अंधकार तोण है जो परजा दे अज़गानी होण करके
अुहनां दीआण मज़तां मार रिहा सी। ।यथा- बाझहु गुरू गुबार है है है करदी सुणी
लुकाई। ।भा: गुर: वा: १, पौ: २४॥
अुदारा = सखी, बड़ा। इथे अरथ बड़ा है।
सु प्रकाश = स्रेशट प्रकाश, इशारा अुस पूरन निरोल आतम जीवन ते
इलाही गान वज़ल है जो सतिगुराण ने जगत ळ दिज़ता ते धुरोण लैके आए सन।
नर दारा = नर = मनुख। दारा = इसत्री।
अशोक = शोक रहत, बेफिकर। राणक = रंक, कंगाल।
ब्रिंदन = समूह, सारे। अरबिंद = कमल।
अभिबंद = नमसकार, बड़े अदब वाले नमसकार तोण मुराद है।
।संस: अभि+वंद। वंदना = सतिकार (करना), अुसतती (करनी),
नमसकार॥