Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ३०२
को ऐसो बड बिघन भा? बाकुल नर नारी।
दिखीयति हरखति को नहीण, सभि हैण इक सारी ॥२४॥
नर नै भनो ब्रितांत तबि, जो नगर नरेशा।
एक पुज़त्र तिस को हुतो, तन चारु विशेशा।
तरुन१ होनि लागो हुतो, पिखि जीवति राजा२।
पटरानी को परमप्रिय३, म्रितु भयो सु आजा ॥२५॥
यां ते सभि बाकुल भए, न्रिप पाग अुतारी।
पीटति सिर सुध नहिण रही, मूरछना धारी।
तिमि राणी आतुर बडी, भा रिदे कलेशू।
प्रजा कुतो४ हरखहि रिदै, दुख लहो अशेशू५ ॥२६॥
न्रिप सुखि ते परजा सुखी, दुखि ते दुख पावै।
इम बाकुल नर हुइ रहे, रव रुदन६ अुठावैण।
सुनिके चित महिण चितवतो -इहु अग़मत थाईण७।
न्रिप सुत एक जिवाइबे, सभि लागहिण पाई८ ॥२७॥
सेवक होवहिण भाव धर, सभि सेव कमावैण।
इस ते नीकी अपर बिधि, को हाथ न आवै।
अुर प्रसंन हुइ करि गयो, न्रिप दार* अगारे।
कूंजन सम९ रानी जहां, कुरलाति पुकारे॥२८॥
केस अुखारति सीस के, नहिण बसन संभारै।
कर तल सोण पीटति बदन, सिर जंघन मारै१०।
अति ब्रिलाप संकट लहो, लोचन जल गेरैण।
जहिण कहिण हाहाकार भा, अूची धुनि टेरैण ॥२९॥
न्रिपति महां बाकुल परो, मंत्री बिलखावै१।
१जवान।
२जिस ळ तज़क तज़क के राजा जीअुणदा सी।
३बहुत पिआरा।
४किवेण।
५सारिआण ने।
६रों दा शबद।
७करामात दा मौका है।
८चरनीण लगणगे।
*पा:-दुरग।
९कूंज वाणू।
१०हज़थ तलीआण नाल मूंह सिर ते पज़टां ळ मारदी होई पिज़ट रही है।