Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६) ३९६
५१. ।माही ने साका सुनाअुणा॥
५०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>५२
दोहरा: खान वग़ीदा निकसिकै,
आयो सभा सथान।
ब्रिंद चमूंपति मिलि गए,
बैठे मेल महान ॥१॥
चौपई: सुनि प्रभु माही करहि बतावन।
इक सिख मो कहु कीन सुनावन।
जथा जोग मैण बूझि ब्रितंता।
सो तुम पास भनौण भगवंता! ॥२॥
मुल पठान दिवान महाना।
आन थिरे जहि सभा सथाना।
दूर दूर लगि गिरद सिरंद।
हुते तहां मिलि बैठे ब्रिंद ॥३॥
हिंदू खज़त्री बनक कितेक।
पुरि जन देखनि हेत अनेक।
भई सभा महि भीर बिसाला।
बैठे जाल१, खरे नर जाला ॥४॥
रंघर ग्राम मोरडे बासी।
सो सरदार हुतो दल पासी।
तिस की दिशा करे तबिनैना।
बोलो तबि वग़ीद ां बैना ॥५॥
-पुज़त्र गुरू के जहां बिठाए।
तहि ते ले आवहु इस थाएण।
सादर म्रिदुल बाक कहि करि कै।
देहु दिलासा लेहु सिधरि कै२- ॥६॥
मोरडेश सुनि करि तहि गयो।
दादी पौत्र बिलोकति भयो।
निखट पहुचि बोलो -सुनि माई!
सभा नबाब लोक समुदाई ॥७॥
१बहुते।
२जाके लै आवो।