Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ७) ९२
९. ।सिरी चंद जी दरशन। बुज़ढंशाह॥
८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ७ अगला अंसू>>१०
दोहरा: श्री सतिगुर करि बाहु को,
ले करि पुज़त्रनि संग।
हित अखेर के तार है,
गमने चढे तुरंग ॥१॥
चौपई: अलप सैन लै संग सिधारे।
चारहु पुज़त्र हयन असवारे।
श्री अंम्रितसर को तबि छोरि।
गने प्रभू गिरनि की ओर ॥२॥
मन भावति सो करति अखेरा।
निसा परी करि बाहर डेरा।
खान पान करि कै सुपताए।
पुज़त्रन जुति जे नर समुदाए ॥३॥
भई प्रभाति जाग करि थिरे।
सौच शनान समूहनि करे।
देश मनोहर परबत काछे१।
तिसे निहारनिसतिगुर बाणछे२ ॥४॥
सुनो प्रथम ही तिस दिशि मांही।
श्री नानक नदन रहि तांही।
सिरी चंद जिन बैस बिलदं।
जोग ब्रिती को लेति अनदं ॥५॥
श्री हरिगोविंद चहो -निहारैण।
गमनैण तिस ही देश बिहारैण३-।
इम चित धारति गिरा अुचारी।
तूरन तारी करि असवारी ॥६॥
सुनति हुकम को सकल संभाले।
ग़ीन तुरंगन ततछिन डाले।
खान पान करि हयनि अरोहे।
१परबत दे कोल दा देश सोहणा है ।संस: कज़छ॥ देखो हेठां प्रयाय अंक ५।
२चाहिआ।
३चज़ल विचरीए।