Sri Nanak Prakash
१२८१
७३.संत मंगल संचखंड विखे श्री अकाल पुरख मिलं प्रसंग॥
दोहरा: अदभुत संत समाज सरु,
करि शनान मिलि तांहि
बाइस ते पिक होति है,
बक ते हंस कराहि ॥१॥
अदभुत=अचरज अनोखा
संस: अदभुत॥
बाइस=काण संस: वायस॥ भाव-खोटे, क्रर, लोभी
पिक=कोइल भाव-गुणी, शुभ गुणां वाले
बक=बगला, भाव-दंभी, नीच करमां वाले
हंस=हंस पंछी, भाव-स्रेशट, सुजन, संत, पारगिरामी पुरख
अरथ: संतां दा संग इक अचरज सरोवर है कि जिन्हां ळ मिलने (रूपी) इशनान
करन नालकाण तोण कोइल हो जाणदे हन (ते जो) बगले तोण हंस बणा लैणदा है
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: बाला कहिति रुचिर इतिहासा
श्री अंगद जी सुनि सुखरासा!
हम को ध्रज़व लोक महिण छोरा
गमने सज़च खंड की ओरा ॥२॥ विशेश टूक
तिह ब्रितंत देखो नहिण कैसे
जोण मैण सुनोण सुनावोण तैसे
छिनक बिखै पहुणचे सुखदानी
जिहण सुठ रचना बनी महानी ॥२॥
अनिक बिधिनि के अुपबन रूरे
शाखा निवीण फलन रस पूरे
कुसम बाटिका बनी सुहाई
भौणर गुंजार जिनहिण पर लाई ॥४॥
करहिण निरंतर हरि जस गाना
हंस, कीर१, पिक२, जे खग३, नाना
पौर४ वडो सुंदर अुजिआरा१
१तोते
२कोइल
३पंछी
४दरवज़जा