Sri Nanak Prakash

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.१५. गुरू अंगद देव मंगल खरा सौदा; बाबा कालू ते राय बुलार॥

{कालू जी ने चपेड़ां मारनीआण} ॥२६..॥
{राइ बुलार दा कालू जी अुते रोस} ॥४७॥
दोहरा: श्री अंगद अरबिंद पद, आनणद कंद मुकंद
धरपर धरि सिर नमहि करि, शरन हरन दुख दुंद ॥१॥
अरबिंद=कमल पद=चरण, पैर
आनणद कंद=आनद दे फल या बदल, आनद दाते
मुकंद=मुकती दाता
दुंद=दुख,दंद=दुख॥ वडे दुख, अुपज़द्रव
अरथ: श्री गुरू अंगद देव जी-(जिन्हां दी) शरन वज़डे दुखां ळ दूर करन वाली है
(अर जो) आनद दे दाता ते मुकती दे दाता हन-दे चरनां कमलां पर धरती
अुते सिर धर के मज़था टेकदा हां
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: जब हम गमने१ तिन को तागी
बोले संत गिरा२ अनुरागी३
आरबलालघु बाल सुचाली
गिरा विराग भगति भल साली४ ॥२॥
तुम सोण, आनि कीन बहु भाअू
म्रिदुल५ क्रिपाल बिसाल सुभाअू
भोजन सौज आनि६ जब बैसे
चलन रजाइ७ दीनि तुम कैसे? ॥३॥
सुनि महंत बोलो बरबानी
इह को परम पुरख८ सुखदानी
कलावान गानी गुनखानी
दुरो रहै९ गति१० परहि न जानी ॥४॥

१चले
२बाणी
३प्रेम भरी
४अुस दी भली बाणी भगती ते वैराग दा घर सी
५कोमल
६रसत लिआ के
७जाण दी आगा
८(भाव गुरू नानक) कोई परम पुरख है
९छिपिआ रहिंदा है
१०असली हालत

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