Sri Nanak Prakash

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३४. गुरू पग मंगल मरदाना आया॥

{मरदाना गुरू जी पास आया} ॥३३॥
{मरदाने ळ नाल रहिं लई प्रेरना} ॥३७..॥
{भुज़ख तेह सहिं लई तिआर रहिं वासते कहिंा} ॥५२॥
{मरदाने दी रबाब} ॥६३॥
दोहरा: स्री गुरु पग है कीलिका, मन दानो ढिग कीन
मोहादिक पट भिटति नहिण, राखहिणगे लखि दीन ॥१॥
पग=चरण
कीलिका=चज़की दी किज़ली(अ) कील लैं वाला मंत्र
दानो=दांा (अ) दानव
पट=पुड़ भिटत=भिड़दे, परसपर रगड़ नहीण खांदे
लखि=लखके, देखके, जाणके दीन=ग्रीब, लाचार
अरथ: स्री गुरू (जी दे) चरण चज़की दी किज़ली (समान हन, मेरा) मन (दो पुड़ां दे
विच आइआ दांा है, जो मैण इस किज़ली दे) नेड़े कर दिज़ता है, मोह
आदिक पुड़ (इस किज़ली दे कोल) भिड़दे नहीण (इस करके मेरे मन ळ)
ग्रीब जाणके बचा लैंगे
भाव: आपा आपे विच सुखी है, लोभ मोह आदिक ब्रितीआण इसळ द्रिशटमान विचफसाअुणदीआण हन, मन इक दांे वाणू है जो इन्हां ब्रितीआण दी दंद रगड़
विच आइआ होइआ है, इस करके श्री गुरू जी दे चरनां दा धिआन
धरना मानोण किज़ली दे नेड़े आ जाणा है किज़ली दे नाल लगे दांे पिसदे
नहीण इह खिआल श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी विच इंझ है-
दुइ पुड़ चकी जोड़ि के पीसं आइ बहिठु ॥
जो दरि रहे सु अुबरे नानक अजबु डिठु ॥
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: बाला कहै सुनो श्री अंगद
श्री गुर कथा देय सुख संपद
निस बासुर राजहिण१ अुदिआना
जिस दरशन दुख दारिद हाना२ ॥२॥
भगत जगत महिण मग प्रगटावन
कुमति कुपंथ कुदंभ३ मिटावन
कीरति नाम प्रताप वधावन


१विराज रहे हन
२नाश हुंदे हन
३करूर दंभ

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