Sri Nanak Prakash
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३५. गुरचरण मंगल रबाब लिआअुणा॥
{फिरंदा} ॥२१, २९॥
{मरदाने दी रबाब} ॥४२॥
{रबाब सुण के पसु-पंछी मोहे जाणे} ॥४३॥
{रबाब सुण के गुरू जी दी समाधी लगणी} ॥४४॥
दुवज़या छंद: चरन कमल कलिमलहि निवारन
अुर धरि धानहि तिन को
स्री नानक इतिहास बखानोण
दुख नाशन प्रन जिनको
कलिमलहि=पापां ळ॥
अरथ:जिन्हां (श्री गुरू नानक देव जी) दा प्रण दुख नाशन है, ते जिन्हां दे चरण
कमल पापां ळ दूर करन वाले हन अुन्हां (चरनां) दा धान ह्रिदय विच
धारके (मैण अुन्हां) श्री गुरू नानक देव जी दा इतिहास वरणन करदा हां
श्री बाला संधुरु वाच ॥*
सुसा अवास गए सुखरासी
मिली सोदरी हित सोण
सादर मंच डसाए बैसाए
हरखी सरस अमित सोण१ ॥१॥
श्री नानक म्रिदु बचन अलाए
सुसा! मनोरथ भनिये
तुम आइसु अनुसारि सदा मैण
बज़छ सज़छ महिण२ गुनिये३
सुनहु भ्रात परमेशर रूपा!
जगत रचो जिह माया
सज़ता ले करि तुमरी सिरजे
जे ब्रहमंड निकाया४ ॥२॥
नरन अुधारन तन धरि आपे
बिचरति हो जग मांही
*कई नुसखिआण विच इह पाठ एथे नहीण पर अधाय दे मुज़ढ विच है
१बिअंत खेड़े नाल
२दिल पविज़त्र विच
३विचारीए
४सारे