Sri Nanak Prakash

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४७. नखकाणत मंगल संगलादीप राजा शिवनाभ॥

{गुरू जी सुज़किआ बाग हरा करना} ॥१३॥
{गुरू जी दी प्रीखिआ} ॥१९॥
{पदमनी भेजंी} ॥३७..॥
{शिवनाभ ने गुरू जी पास आअुणा} ॥६४..॥
दोहरा: श्री गुर पद नख काणति जे, रुचिर चंद्रिका मान
करि चकोर मन आपनो, कहौण कथा गतिदान ॥१॥
काणति=सुंदरता
रुचिर=रुची अुपजाअुण वाली, पारी लगण वाली; सुंदर
चंद्रिका=चंद दा प्रकाश, चांदनी
अरथ: श्री गुरू जी दे चरणां दे नहुंआण दी जो सुंदरता है, अुह मानो सुंदर चांदनी
है, (मैण) आपणे मन ळ (अुस दा) चकोर बणा के मुकती देण हारी (या,
मुकति दाते दी) कथा (अज़गोण होर) वरणन करदा हां
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: अब* श्री नानक कीन पयाना
मैण पुन संगि दुतिय मरदाना
दे करि कितिक१ थान अुपदेशासिमरहु सज़तिनाम जगतेशा ॥२॥
ग्राम नगर शुभ मग प्रगटावा
चलति चलति सागर पुन आवा
जाइ भए ठांढे तिह तीरा२
बोले श्री मुख वाक गंभीरा ॥३॥
कहु बाला सागर असगाहा
कहूं न पज़यति इह को थाहा३
जाणोण पार चहिति हम मन मैण
किस प्रकार गमनैण अब बन मैण४? ॥४॥
निकट न को अब आइ जहाजा
जाण ते पार जान है काजा
तूं सानो कछु मसलत दीजै

*पा:-तब
१कई
२अुस दे कंढे
३भाव डूंघा है
४पांी विच

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