Faridkot Wala Teeka

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पूरे गुरोण की वज़डी वडिआई हैण कियोणकि वज़डे हरी को सेवकर अतुल सुख पाइआ
है॥
गुरि पूरै दानु दीआ हरि निहचलु नित बखसे चड़ै सवाइआ ॥
जो पूरे गुरोण को अपना नाम निहचलदान दीआ है सो बखसने से नित सवाइआ
चड़ता है॥
कोई निदकु वडिआई देखि न सकै सो करतै आपि पचाइआ ॥
जो कोई निंदक वडिआई देख नहीण सकता सो करते ने आप (पचाइआ) दगधु
कर दीआ है॥
जनु नानकु गुण बोलै करते के भगता नो सदा रखदा आइआ ॥२॥
स्री गुरू जी कहते हैण मैण जन के गुणों को बोलता हूं जो भगतोण को सदा रखता
आइआ है॥२॥
पअुड़ी ॥
तू साहिबु अगम दइआलु है वड दाता दांा ॥
हे साहिबु तूं अगम हैण और दिआल हैण पुना वज़डा दाता हैण तथा दाना हैण अरथात
सरब के जानणे वाला हैण॥
तुधु जेवडु मै होरु को दिसि ना आवई तूहैण सुघड़ु मेरै मनि भांा ॥
मेरे को तेरे जैसे वडा और कोई द्रिसटी नहीण आवता है तूं ही (सुघड़) चत्र मेरे
मन मै भाइआ हैण॥
मोहु कुटंबु दिसि आवदा सभु चलंहारा आवण जाणा ॥
सो कुटंब द्रिसट आवता है तिस करते सो (चलं हारा) नाम रूप है औरु इस
कुटंब मैण मोह करने से आवण जाणा अरथात जंमण मरणा होता है॥
जो बिनु सचे होरतु चितु लाइदे से कूड़िआर कूड़ा तिन माणा ॥
सचे बिनाऔर पदारथोण मे चित लावते हैण सो झूठे हैण और झूठा ही तिनका माण
है॥
नानक सचु धिआइ तू बिनु सचे पचि पचि मुए अजाणा ॥१०॥
स्री गुरू जी कहते हैण हे भाई तूं सचे परमेसर ळ सिमरु सचे बिनां (अजाणा)
अगात पच पच मूए हैण॥१०॥
सलोक म ४ ॥
जहां गोइंदवाल है एहु जमीन गोणदे खत्री ने झूठी सपथ कर और गामोण से काट
लई थी इस अधरम कर भूतोण का निवास हूआ था नगर वसं नहीण देते थे कोठिआण को
भूत गिराइ देते थे तब गोणदा खडूर गुरू अंगद साहिब जी के पास जाइ कर गुरू अमर
दास जी को ले आइआ तब भूत भाग गए सैहर वसा। और बाअुली साहिब की जगा का
मोल भी दे दीआ पूजा आवती देख करके मालकीअत के दावे कर तिस के बेटे हिसा माणगने
लगे अकबर पास दिली मै पुकार करी तिनका परोहत जिसकी संअिा तपा थी सो भी गुरू
अमर दास जी के साथ विरोध करने लगा बावली की चठ का नेअुता ना माना तब गुरू जी
ने ब्राहमणोण प्रती पहिले एक रुपया कहा था पुना एक मुहर दखणा सुणाइ दई फेर तिस
का मन ललचाइआ तिस परथाइ कहते हैण॥
अगो दे सत भाअु न दिचै पिछो दे आखिआ कंमि न आवै ॥

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