Faridkot Wala Teeka

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प्रशन: जीव नाम कैसे हूआ॥ अुज़त्र॥ ईसर के हुकम मैण होया है हुकम बुूझ कर
ही ब्रहम मैण समाई होती है (हुकमु) असल जो बेद की आगिआ है आप को परमेसर साथ
अभेद समझने की है॥
प्रशन: इस भेद को सासत्रग पंडत तअु सभ जानते होवेणगे कि जीव ब्रहम रूप
है॥७॥अुज़त्र॥
इस मन का कोई जानै भेअु ॥
इह मनि लीं भए सुखदेअु ॥८॥
इस (मन) आतमा का कोई भेद जानता है कि यहि जीव ब्रहम रूप है॥
प्रशन: जेएह मन ब्रहम मैण मिले तो किआ लाभ होता है? अुज़त्र॥ एह आतमा के
ब्रहम मै अभेद हूए हूए आप को सुख सरूप और (देअु) प्रकाश रूप मानता है॥८॥
प्रशन: जीव सरीरोण परती भिंन भिंन है या एक ही है? अुज़त्र॥
जीअु एकु अरु सगल सरीरा ॥
इसु मन कअु रवि रहे कबीरा ॥९॥१॥३६॥
जीव एक है बहुड़ो सगल सरीरोण मे अकास वत बिआपिआ हूआ है जीव नाम
चैतन सता का है घट मट आदिकोण सम सरीर है॥
प्रशन: आप किसका भजन करते हो?
अुज़तर: कबीर जी कहते हैण हम इसी आतमा को भज रहे हैण वा और भी जो वज़डे
महातमा हैण सो आतमा सरूप का जो जानणा है इही भजन मानते हैण॥९॥१॥३६॥
गअुड़ी गुआरेरी ॥
जे कहे आतमा मै अभेद होंे को जगासू किआ करतब करेण अर जो अभेद होए हैण
सो भिंन हो कर शोकवान होते हैण या नहीण॥ तिस पर कहते हैण॥
अहिनिसि एक नाम जो जागे ॥
केतक सिध भए लिव लागे ॥१॥ रहाअु ॥
जो दिन रात अरथात निरंतर एक नाम मैण जागे हैण और लिव ब्रिती के लगाने से
(केतक) कितनेभाव बहुत ही (सिध) मोख भागी भए हैण॥
साधक सिध सगल मुनि हारे ॥
एक नाम कलिप तर तारे ॥१॥
और साधनोण के करने वाले जो (सिध) अंमादिक सिधीओण के संजुगत हैण पुना
(मुनि) मननसीली संपूरन ही साधन करते हूए थकत हो गए हैण परंतू नाम से बिनां
संसार समुंद्र नहीण तरे। अदुतीय एक परमेसर का नाम कैसा है मनोकामना के देंे को
कलप ब्रिछ है और जीवोण को संसार समुंदर से तारे है॥
वा (कलिप) कलपत संसार से नाम ने (तर) अतसै करके तारे हैण तकार देहली
दीप नयाइकर दोने त्रफ लगाइ लैंा॥१॥
जो हरि हरे सु होहि न आना ॥
कहि कबीर राम नाम पछाना ॥२॥३७॥
और जो हरी ने अपनी तरफ हरे हैण अरथात अपने मैण मिलाइ लीए हैण (सो)
आना भिंन नहीण हो सकते हैण। वा जो (हरे) हरी को पाइ कर अनंद हूए हैण पाअुंे का

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