Faridkot Wala Teeka

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हे मेरे (बीर) भाई हमारा बलु हरि चुका है यह (तनु) सूखम मन भी हरि के
बस है औ सरीर भी हरि के बस है॥१॥
भगत जना कअु सरधा आपि हरि लाई ॥
विचे ग्रिसत अुदास रहाई ॥२॥
जो परमेसर के भगत जन हैण तिन को नाम सिमरन की सरधा हरि ने आप लगाई
है सो भगत ग्रिहसत ही मेण अुदासीन रहते हैण॥२॥
जब अंतरि प्रीति हरि सिअु बनि आई ॥
तब जो किछु करे सु मेरे हरि प्रभ भाई ॥३॥
जब अंतसकरण से हरि से प्रीत बन आई है तब वहु भगतु जो किरिआ करता है
सो मेरे हरि प्रभू को भावता है॥३॥
जितु कारै कंमि हम हरि लाए ॥सो हम करह जु आपि कराए ॥४॥
जिस कारज औ क्रित भाव समान वसेख करने मेण हरि ने हम लगाए हैण सोई हम
करते हैण औ जो आप हरि हम से आगे कराएगा सो करेणगे॥४॥
जिन की भगति मेरे प्रभ भाई ॥
ते जन नानक राम नाम लिव लाई ॥५॥१॥७॥१६॥
जिन दासोण की सेवा मेरे हरि प्रभू को अछी लगी है स्री गुरू जी कहते हैण तिन
दासोण ने राम नाम सिमरन मेण ब्रिती लगाई है॥५॥१॥७॥१६॥
पंना ४९५
गूजरी महला ५ चअुपदे घरु १
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
किसी काल मेण लंगरु बंद देखा तअु भाई गुरदास जी ने कहा कि आप कुछ
अुपाइ करैण तिस पर भाई गुरदास जी प्रति अुपदेस कहते हैण॥
काहे रे मन चितवहि अुदमु जा आहरि हरि जीअु परिआ ॥
हे मन पिआरे किस वासते अुदम चितवता हैण जाण कहीए जेकर जीव की पालना के
आहर मैण हरि जी परिआ है॥
सैल पथर महि जंत अुपाए ता का रिजकु आगै करि धरिआ ॥१॥
(सैल) खुशक पथर मैण जंत अुतपति करे हैण तांका रिजक आगै करि रखिआ
है॥१॥मेरे माधअु जी सतसंगति मिले सि तरिआ ॥
हमारे सामी माइआ पती की जो सतसंगत मैण मिला है सो तरिआ हूआ है॥
गुर परसादि परम पदु पाइआ सूके कासट हरिआ ॥१॥ रहाअु ॥
गुर प्रसादि से परम पद पाइआ है सुके कासट वत रिदा हरिआ हूआ है॥
जननि पिता लोक सुत बनिता कोइ न किस की धरिआ ॥
जननी माता पिता होर लोक संबंधी (आ) चारोण ओर ते कोई किसे की (धरि) ओट
नहीण॥

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