Faridkot Wala Teeka

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हरि हरि नामु देहि सुखु पाईऐ तेरी भगति भरे भंडार ॥१॥ रहाअु ॥
हे सच रूप तेरा जो आसरा लैंा है एही मैने जप तप अर संजम जाना है हे हरी
हर प्रकार से अपना नामु ही देवेण तो सुखु पाईता है अर तेरी भगती के भंडारे से संतोण
के रिदे भरे हूए हैण॥१॥
अब तिन के लय चिंतन के विचार का प्रकार कहिते हैण॥सुंन समाधि रहहि लिव लागे एका एकी सबदु बीचार ॥
जो (एका एकी) एकाग्र हो कर गुर सबद का बीचार करते हैण सो ब्रिती लगाइ कर
(सुंन) निरबिकलप समाधी मैण इसथित रहते हैण॥
जलु थलु धरणि गगनु तह नाही आपे आपु कीआ करतार ॥२॥
(तह) तिस समाध मैण वा तिस सरूप मैण वा तिनकी द्रिसी मैण (जलु थलु) भाव
पताल (धरणि) मिरत लोक अर अकास कछु है नहीण था तब करतार ने अपने आप ही
इह खेल वा अपना आप ही कीआ हूआ था॥ भाव अदुती था तिस समाधी वालोण ने आपना
आप करतार रूप कीआ हूआ है॥२॥
ना तदि माइआ मगनु न छाइआ ना सूरज चंद न जोति अपार ॥
सोई द्रिढ कराअुते हैण जब महां प्रलै का समाण था तब ना तो सो माया की मगनता
था अर ना (छाया) अविदिआ ही की मगनता था वा छाया अर धूप नहीण थी न सूरज था
न चंद्रमा था एक अपार जोति ब्रहम ही था वा तद ततवेता करतार रूप की द्रिसी मेण
माइआ आदक कछू नहीण है अपार जोती ब्रहम ही है॥
सरब द्रिसटि लोचन अभ अंतरि एका नदरि सु त्रिभवण सार ॥३॥
जो नेत्रोण करके सरब नाम रूप प्रपंच (द्रिसटि) दिखाई पड़ता है सो सभ तिस के
(अभ) रिदे कै अंतरि ही था भाव इह कि इह सभ माइआ मेणलीन था माइआ तिस मैण
लीन थी त्रिभवणोण का (सार) तत रूप था (नदरि) देखनहारा एक ही वा एक नदरी जो
तीनोण भवनोण का सार रूप है सो महातमा तिस को रिदे के बीच जो गिआन रूप नेत्र हैण तिन
कर सरब रूप देखते हैण॥ अब अुतपती चिंतन कहते हैण॥३॥
पंना ५०४
पवणु पांी अगनि तिनि कीआ ब्रहमा बिसनु महेस अकार ॥
तिस परमेसर ने पवण पांी अर अगनी आदि ततोण को अुतपति कीआ पुना
ब्रहमा बिसनु अर सिव तीनोण देवता कीए तिन दारा सरब प्रपंच के (अकार) सरीर कीए॥
इस पकार प्रारथना करते हैण॥
सरबे जाचिक तूं प्रभु दाता दाति करे अपुनै बीचार ॥४॥
हे प्रभू सरब जीव भिछक हैण अर तूं दाता हैण अपने वीचार दुआरा तूं दात करता
हैण॥४॥
कोटि तेतीस जाचहि प्रभ नाइक देदे तोटि नाही भंडार ॥
हे समरथ सामी तेतीस करोड़ देवते तेरे से जाचना करते हैण परंतू सभ को देते
हूए भी तेरे भंडारे मेण (तोटि) घाटा नहीण पड़ता है॥
अूणधै भांडै कछु न समावै सीधै अंम्रितु परै निहार ॥५॥

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