Faridkot Wala Teeka
विचे ग्रिह गुर बचनि अुदासी हअुमै मोहु जलाइआ ॥
गुर अुपदेस करके भगतोण ने हंता ममता अर मोह को जलाइआ है इसी ते
ग्रहसत के बीच मेण होते ही अुदासी हूए हैण॥
आपि तरिआ कुल जगतु तराइआ धंनु जंेदी माइआ ॥
अुनके अुतपंन करने हारी माता धंन है तिनका समदाअु आप तो तरा है अर
अपनी कुल तथा संसार को भी संसार समुंदर से तराइआ है॥
ऐसा सतिगुरु सोई पाए जिसु धुरिमसतकि हरि लिखि पाइआ ॥
ऐसा सतगुर वही पुरस पावता है जिसके मसतक मेण (धुरि) आदि से ही अुतम
लेख लिख पाइआ है॥
जन नानक बलिहारी गुर आपणे विटहु जिनि भ्रमि भुला मारगि पाइआ ॥१॥
स्री गुरू जी कहते हैण ऐसे अपने सतगुरोण के अूपर से बलिहारने जाता हूं जिसने
मैण भरम कर भूला हूआ सुभ रसते मैण पाइ दीआ हूं॥१॥
म ३ ॥
त्रै गुण माइआ वेखि भुले जिअु देखि दीपकि पतंग पचाइआ ॥
जैसे दीपक को देख करके पतंग जला है तैसे द्रिगुणी माइआ देख करके जीव भूल
रहे हैण॥
पंडित भुलि भुलि माइआ वेखहि दिखा किनै किहु आणि चड़ाइआ ॥
पंडत भूल भूल करके माइआ देखते हैण कि देखो तां सही किसी ने कथा पर किआ
कुछ लिआइ कर चढाया है॥
दूजै भाइ पड़हि नित बिखिआ नावहु दयि खुआइआ ॥
जदपि पढते हैण परंतू (दूजै) दैत भाव करे बिखिओण के वासते पड़ते हैण नाम
सिमरन से देव ने तिन को भुलाइआ है॥
जोगी जंगम संनिआसी भुले ओना अहंकारु बहु गरबु वधाइआ ॥
जो जोगी जंगम सनिआसी हैण सो भेख मात्र के गरब से भूले हैण ओनां ने अहंकार को
बहुत बढाइआ है॥छादनु भोजनु न लैही सत भिखिआ मनहठि जनमु गवाइआ ॥
(छादनु) बसत्र अर भोजन मात्र सत की भिखिआ नहीण लेते मन हठ करके तिनोण ने
मानुख जनम को गवाया है॥
एतड़िआ विचहु सो जनु समधा जिनि गुरमुखि नामु धिआइआ ॥
इन सभ मेण से सोई जन (समधा) समझा है जिसने गुरमुख हो कर के नाम का
धिआअुना कीआ है॥
जन नानक किस नो आखि सुणाईऐ जा करदे सभि कराइआ ॥२॥
स्री गुरू जी कहते हैण किसी को किआ करके सुनाईए जाण सभ अुसी करता पुरख का
कराइआ हूआ भला बुरा करम करते हैण भाव इह कि नरक सरग पुंन सभ करता पुरख
ने बनाए हैण अुसी अनसार करम कर कर के फल भोगते हैण॥२॥
पअुड़ी ॥
माइआ मोहु परेतु है कामु क्रोधु अहंकारा ॥