Faridkot Wala Teeka

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बिलावलु बांणी भगता की ॥
कबीर जीअु की
सति नामु करता पुरखु गुर प्रसादि ॥
जगत के मिथा जनावते हूए पूरब की बोली मैण अुपदेश अुचारन करते हैण॥
ऐसो इहु संसारु पेखना रहनु न कोअू पईहै रे ॥
(रे) हे भाई इहु संसार जो देखणा करीता है वा ऐसा देखणा करो वा ऐसा है
जैसा पुतलीओण का (पेखना) तमासा होता है इसमैण कोई जीव रहिंा नहीण पावता है भाव
यहि सभि नास हो जावैणगे॥
सूधे सूधे रेगि चलहु तुम नतर कुधका दिवईहै रे ॥१॥ रहाअु ॥
तांते हे भाई सूधेसूधे चलो वा सूधे सूधे सतिसंग के (रेगि) रसते वा (रेगि) चले
चलो (नतर) नहीण तो परमेसर तुमको जमके पासोण (कुधका) खोटा धका दिवावेगा भाव यहि
नरकोण मैण पड़ोगे वा ना कोई तरक करेगा अरु ना धका देवेगा भाव नरादरु न करेगा॥
प्रशन: जमका धका तो ब्रिध होए ते होवेगा अब भै किअुण करना है॥
बारे बूढे तरुने भईआ सभहू जमु लै जईहै रे ॥
अुत्र॥ हे भाई (बारे) बालक और (बूढे) ब्रिध और (तरने) जोबन अवसथा वाले
इतआदिक सभनोण को जम लेता है किसी को नहीण छोडता॥ यथा-बावन अखरी मैण स्री गुरू
पंचमे पातसाहि जी का बचन है नह बारक नहि जोबनै नहि बिरधी कछु बंध॥ ओह बेरा
नह बूझीऐ जब आइ परै जम फंधु॥
मानसु बपुरा मूसा कीनो मीचु बिलईआ खईहै रे ॥१॥
परमेसर ने इह मानुस (बपुरा) विचारा बल ते हीन (मूसा) चूहा रूप कीआ है
म्रिति रूपी बिली इसको खाइ जाती है॥१॥ प्रसन॥ धन करके तो जमते रखा हो जाती
होइगी?
धनवंता अरु निरधन मनई ता की कछू न कानी रे ॥
अुत्र॥ हे भाई धनवंत और निरधन (मनई) मानस जो है तिस की जम कुछ कां
नहीण मानता है भाव यहि धनवान का लिहाज नहीण करता और निरधन देखकर दुखनहीण
देता सभ को समान ही जानता है॥
राजा परजा सम करि मारै ऐसो कालु बडानी रे ॥२॥
हे भाई राजा और परजा को एक सम जान कर मारता है ऐसा काल भगवान
(बडानी) असचरज ही है वा (बडानी) सभतोण बडाहै॥
प्रशन: भगतोण के सरीर को भी और जीवोण सम काल मारता है तौ तिनोण की किआ
महतता है? ॥२॥
हरि के सेवक जो हरि भाए तिन की कथा निरारी रे ॥
अुत्र॥ हे भाई जो हरी के सेवक तिस हरी के मन मैण भाए हैण तिनोण की कथा और
जीवोण ते निआरी है॥
आवहि न जाहि न कबहू मरते पारब्रहम संगारी रे ॥३॥
हे भाई वहु संत जन वाहिगुरू को तिआग कर ना कहीण आवते हैण न कहीण जाते
हैण इसीते ना वहु जनमते हैण न मरते हैण किअुणकि वहु पारब्रहम के संग ही रहिते हैण

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