Faridkot Wala Teeka

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ओअंकारि सबदि अुधरे ॥
ओअंकारि गुरमुखि तरे ॥
ओअंकार (सबदि) ब्रहम की अुपासना करके जीव अुधरे हैण वा ओअंकार ब्रहम ने
दैणत कर हरे हूए (सबदि) बेद अुधरे है ओअंकार की अुपासना से (गुरमुखि) गुरां दुआरे
संसार समुंद्र से जीव तरे हैण॥
ओनम अखर सुणहु बीचारु ॥
ओनम अखरु त्रिभवण सारु ॥१॥
ओअंकार जो नमसकार करने जोग अबनासी है औ ओअंकार ही त्रिलोकी मैण सार रूप
है तिस का बीचार तुम सुनो॥१॥
सुणि पाडे किआ लिखहु जंजाला ॥
लिखु राम नाम गुरमुखि गोपाला ॥१॥ रहाअु ॥
हे पंडत सुन बंधन रूप करमो को किआ लिखता है गुरोण दारे राम गोपाल का नाम
लिख॥१॥ससै सभु जगु सहजि अुपाइआ तीनि भवन इक जोती ॥
ससै अखर का इह वीचार है त्रिलोकी रूप जो जगत है जो सभी (इक जोती)
प्रमातमाण ने निरजतन ही अुतपत कीआ है॥
गुरमुखि वसतु परापति होवै चुंि लै माणक मोती ॥
जो गुरमुखि (माणक) मनन (मोती) वैराग आदिक गुणों को चुं लेते हैण भाव जो
साध संगत दुआरा गुणों को धारते हैण तिन को इस संसार मैण आतम वसतू प्रापति होती
है॥
समझै सूझै पड़ि पड़ि बूझै अंति निरंतरि साचा ॥
पड़ि पड़ि सासत्रां को जो भगवत के सरूप सतिगुरोण से पूछते हैण पुना गुरोण का
अुपदेस समझ करि अभास करते हैण सभ की (अंति) औधी रूप (निरंतरि) एक रस जो
साचा वाहिगुरू है सो तिन को साखातकार हो जाता है॥
गुरमुखि देखै साचु समाले बिनु साचे जगु काचा ॥२॥
जो गुरमुख सचे नाम को समालते हैण सो विचार रूप नेत्रोण कर देखते हैण किआ कि
बिन सचे वाहगुरू तो जो इह नाम रूप जगत है सो (काचा) मिथा है॥२॥
धधै धरमु धरे धरमा पुरि गुणकारी मनु धीरा ॥
धधै अखर का इह बीचार है ओह महातमाण धरम को धारन करते हैणजो सगल
धरमोण कर पूरन हैण तिन गुनकारीओण का अरथात तिन गुनवानोण का मन धीरज वाला है॥
धधै धूलि पड़ै मुखि मसतकि कंचन भए मनूरा ॥
धधे दुआरा कहते हैण तिन परमातमा की जो चरन धूड़ है सो जब मसतक पर पड़े
तअु जीअु सुध रूप होता है औ जिनके पड़ी है यदपि वहु मनूर वत मैले थे तअु भी
(कंचन) सुवरन भाव सुध ब्रहम रूप हो गए हैण॥
धनु धरणीधरु आपि अजोनी तोलि बोलि सचु पूरा ॥
(धरणीधरु) प्रिथवी के धारने वाला भाव परमेसर धंन है पुना वहु कैसा है आप
अजोनी है औ (तोलि) बीचार जिसका पूरा है अर (बोलि) सची है वा जिन संतोण का धन
धरणीधर ही सचा है तिन संतो का (तोलि) बीचार पूरा है अर (बोलि) बचन सचा है॥

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