Faridkot Wala Teeka
रामकली महला १ सिध गोसटि
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
एक समैण माझे मेण वटाले शहर पास अचल नाम सथान है जहां सिवरात फागुन
वदी चौदस का मेला होता है तहां सिध सभी आए थे स्री गुरू नानक देव जी भी गए तहां
सिधोण से चरचा हूई सो चरचा इस बानी मेण लिखी है इस करके इस बांणी का नाम सिध
गोसटि है सो अुस सिध गोसट को सिखोण प्रती और असथान और काल मैण फिर गुरू जी
सुनाअुते भए हैण॥सिध सभा करि आसंि बैठे संत सभा जैकारो ॥
गुरू जी कहिते हैण हे भाई सिध सभा लगाइ कर आसंोण पर बैठे हूए थे तब
मैने कहा हे संत सभा तुमको जैकारो कहीए निमसकार है तब सिधोण ने कहिआ तुमने भिंन
भिंन नमसकार किअुण नहीण करी है तब गुरू जी कहते भए प्रिथम तो प्राणोण का भरोसा कछु
नहीण है दूसरे भिंन भिंन करने से देरी लागती थी॥
तिसु आगै रहरासि हमारी साचा अपर अपारो ॥
हे सिधो हमारी तिसु आगे रहरासि कहीए नमसकार है जो साचा अपर अपारु है
मैने दोहां को नमसकार नहीण करी है॥
मसतकु काटि धरी तिसु आगै तनु मनु आगै देअु ॥
मसतकु काटके तन मन सभ आगे धर देअु॥ जे कहे जो परमेसर को तन मन देते
हो तअु सिधो को निमसकार किअुण करी तिस पर कहते हैण॥
नानक संतु मिलै सचु पाईऐ सहज भाइ जसु लेअु ॥१॥
स्री गुरू जी कहिते हैण संत के मिलंे ते सच रूप प्रमेसर दी प्रापती होती है अरु
सहज भाइ कहीए निरजतन ही जस को लईदा है॥१॥ तब सिधोण ने कहिआ हे बाले चलु
तुम को तीरथ जात्रा करवाईए तिसु पर कहते भए॥किआ भवीऐ सचि सूचा होइ ॥
हे सिधो भवणे करके किआ होता है॥ सच नाम जप करके जीअु सूचा होता है॥
साच सबद बिनु मुकति न कोइ ॥१॥ रहाअु ॥
तांते साचे गुरां दे सबद ते बिना मुकति कोई नहीण होता है॥प्रशन॥
कवन तुमे किआ नाअु तुमारा कअुनु मारगु कअुनु सुआओ ॥
आप कवन सरूप हो १ अरु तुमारा नाम किआ है २ अरु तेरा रसता कवन है ३
अर तेरा (सुआओ) परोजन कवन है॥४॥ अुतर॥
साचु कहअु अरदासि हमारी हअु संत जना बलि जाओ ॥
हे सिधो मैण सच कहता हां अर संतोण के आगे हमारी अरदासि है अर हअु संत
जना के बलिहार जाता१ हूं भाव अरथ एह है जो संतोण दा सरूप सोई मेरा सरूप है १ जो
संतोण दा नाअुण सोई हमारा नाअुण है २ जो संतोण दा मारग सोई हमारा मारग है ३ जो संतोण
का प्रोजनु है सोई हमारा प्रोजन है॥१॥ प्रसनु॥
कह बैसहु कह रहीऐ बाले कह आवहु कह जाहो ॥
*१ वा-सच सरूप का वा साच कहिने वाला हूं १ अर मेरा नाम अर दा सीआ है २ अर संतां का जो मारग है
सोई हमारा मारग है ३ अर संतांके बलिहारे जाना एही परोजन है॥४॥