Faridkot Wala Teeka

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सिरीरागु महला ४ वणजारा
सति नामु गुरप्रसादि ॥
हरि हरि अुतमु नामु है जिनि सिरिआ सभु कोइ जीअु ॥
हरी जो सरब भगत जनोण के दुख हरता है तिस का जो नाम है सोई (अुतमु) स्रेसट
साधन है (जिनि सिरिआ) जिस हीर ने रचिआ है सभ कोई जीअु पद संबोधन है सिरजना
कहिने कर तिस की सकती सूचन कराई है॥
हरि जीअ सभे प्रतिपालदा घटि घटि रमईआ सोइ ॥
हरी सभी जीवोण की प्रतिपाला करता है और सरब सरीरोण मैण सो हरी बापक हो
रहा है॥
सो हरि सदा धिआईऐ तिसु बिनु अवरु न कोइ ॥
हे भाई सो हरी सदीव धावणा करीए कोणकि तिस से बिना मुकती देंे वाला
दूसरा कोई नहीण है॥
जो मोहि माइआ चितु लाइदे से छोडि चले दुखु रोइ ॥
जो (मोहि) अगान करके माया मैण चित लावते हैण सो पुरस माइआ को (छोडि
चले) छोडि के चलंे के वकत भाव प्राणोण के विजोग सम दुखी हूए हूए रोते हैण॥
जन नानक नामु धिआइआ हरि अंति सखाई होइ ॥१॥
स्री गूरू जी कहते हैण जिन पुरसोण ने नाम को धाइआ है हरी तिनोण का अंत मैण
सहाई होता है॥१॥
मै हरि बिनु अवरु न कोइ ॥
मेरा तो हरी से बिना होरकोई आसरा नहीण है॥
हरि गुर सरणाई पाईऐ वणजारिआ मित्रा वडभागि परापति होइ ॥१॥
रहाअु ॥
हे बनजारे मिज़त्र परमेसर गुरू जी सरन करके प्रापति होता है और गुरू बडे पुंनोण
कर मिलते हैण॥
पंना ८२
संत जना विणु भाईआ हरि किनै न पाइआ नाअु ॥
हे भाई संत जनां की किरपा से बिना (आ) सरब ओणर ते हरी नाम किसे पुरस ने
नहीण पाइआ है॥नळ॥ संत जनोण की संगति बिना भी पुरस करमोण को करते देखीते हैण सो
तिन करमोण के करने ही से परमेसर को प्रापित हो जावेणगे और तिन का नाम भी भगतोण मैण
हो जावेगा तिस पर कहते हैण॥
विचि हअुमै करम कमावदे जिअु वेसुआ पुतु निनाअु ॥
जिन मनमुखोण के अंतसकरण मै हंता ममता है और (करम कमाणवदे) अनेक प्राकर
के जज़ग तपादिक करम भी कमावने करते हैण तौ भी तिन को निगुरे होने कर परमेसर के
भगत कोई नहीण कहिता है स्री गुरू जी तिस को द्रिसांत पूरबक कहते हैण (जिअु) जैसे
वेसुआ का पुत्र अती बिभूतीमान भी हो जाए तो भी (निनाअु) पिता के नाम से हीन रहिता
है भाव एहि कि ऐसे तिस को कोई नहीण कहिता है कि यहि अमके धनी का पुज़त्रहै तैसे
ही परमेसर पिता के नाम संग मिलाइ कर तिन मनमुखोण का नाम प्रगट नहीण होता॥

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