Faridkot Wala Teeka
पंना ११९७
रागु सारग चअुपदे महला १ घरु १
सति नामु करता पुरखु निरभअु निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुर
प्रसादि ॥
अपुने ठाकुर की हअु चेरी ॥
चरन गहे जगजीवन प्रभ के हअुमै मारि निबेरी ॥१॥ रहाअु ॥
मैण अपने ठाकुर की (चेरी) दासी हूं जब जग जीवन प्रभू के चरन (गहे) पकड़े हैण
तब तिस प्रभू ने जो हंता ममता मारने वाली थी सो निबेड़ दई है॥
पूरन परम जोति परमेसर प्रीतम प्रान हमारे ॥
मोहन मोहि लीआ मनु मेरा समझसि सबदु बीचारे ॥१॥
जिस पूरन (परम) अुतक्रिसट जोती प्रीतम हमारे प्रान रूप परमेसर मोहन ने
मेरामनु मोहि लीआ है मन तिस के सरूप को गुरोण के (सबदु) अुपदेस का बीचार करने से
समझेगा॥१॥
मनमुख हीन होछी मति झूठी मनि तनि पीर सरीरे ॥
मनमुख जो करम हीन हैण तिनकी मति होछी है और बांणी भी झूठी है (सरीरे)
अरतात देह विखे अधास होने से तिन के मन तन मैण पीड़ा रहिती है॥
जब की राम रंगीलै राती राम जपत मन धीरे ॥२॥
जब से हमारी बुधी राम अनंदी विखे राती है तब से राम नाम को जपते ही (मन)
अंतहकरण धीरज को प्रापति भए हैण॥१॥
हअुमै छोडि भई बैरागनि तब साची सुरति समानी ॥
जब हंता ममता को छोडकर हमारी बुधी बैरागन भई तब अंतहिकरण मैण साची
(सुरति) गात समावती भई॥
अकुल निरंजन सिअु मनु मानिआ बिसरी लाज लुोकानी ॥३॥
अकुल निरंजन से हमारा मनु (मानिआ) पतीआया है और लोक लाज बिसर गई
है॥३॥
भूर भविख नाही तुम जैसे मेरे प्रीतम प्रान अधारा ॥
(भूर) भूत काल और भविखत काल मैण तुम ऐसे जाणोण जो तिस जैसा सरूप वाला
कोई नहीण है वहु मेरे प्रीतम प्रानोण के आसरा रूप है॥
हरि कै नामि रती सोहागनि नानक रामभतारा ॥४॥१॥
जो हरी के नाम मैण राती है वही सुहागंी है किोणकि स्री गुरू जी कहते हैण तिनोण
ने राम भतार को जान लीआ है वा सनमुखु है हे हरी भूत भविखत मैण जैसे तुम हो तैसा
होरु कोई नहीण है हे हरी आपके नाम मैण रती होई सुहागन होई हूं हे राम तूं पती
हैण॥४॥१॥
सारग महला १ ॥
हरि बिनु किअु रहीऐ दुखु बिआपै ॥
हरी से बिनां कैसे रहीए किोणकि बेमुख होंे से जनमादी दुख बापता है॥