Faridkot Wala Teeka

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ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
सलोक म ४ ॥
राम नामु निधानु हरि गुरमति रखु अुर धारि ॥
हे भाई हरी राम का नाम निधीओण का घर गुरोण की (मति) सिखा लैकर मन मैण
धारन कर रख॥
दासन दासा होइ रहु हअुमै बिखिआ मारि ॥
हरी के दासोण का दास होइ रहु और बिख रूप हंता ममता को मार देह॥
जनमु पदारथु जीतिआ कदे न आवै हारि ॥
धनु धनु वडभागीनानका जिन गुरमति हरि रसु सारि ॥१॥
जनम रूप पदारथ जीता जावेगा फेर कबी हार नहीण आवेगी वहु पुरख धंनता योग
है स्री गुरू जी कहते हैण जिनोण ने गुर सिखा कर हरी रस को (सार) पाया है॥१॥
म ४ ॥
गोविंदु गोविदु गोविदु हरि गोविदु गुणी निधानु ॥
चारोण जुगोण मैण हरी गोबिंद गुणों का समुंदर हैण॥
गोविदु गोविदु गुरमति धिआईऐ तां दरगह पाईऐ मानु ॥
गुरमत लैकर जेकर गोबिंद गोबिंद करके धाईए तो वाहिगुरू की दरगह मैण
सनमान पाईता है॥
पंना १३१३
गोविदु गोविदु गोविदु जपि मुखु अूजला परधानु ॥
नानक गुरु गोविंदु हरि जितु मिलि हरि पाइआ नामु ॥२॥
मन तन बांणी कर गोविंद को जपणे वाले पुरश का मुख अुजल होता है औ सरब मैण
(परधानु) मुखी होता है॥ स्री गुरू जी कहते हैण गुरू हर प्रकार से गोबिंद रूप ही हैण
जिनके साथ मिल कर हरी नाम पाइआ है॥२॥
पअुड़ी ॥
तूं आपे ही सिध साधिको तू आपे ही जुग जोगीआ ॥तू आपे ही रस रसीअड़ा तू आपे ही भोग भोगीआ ॥
हे हरी तूं आपे ही सिध हैण और साधना करने वाला भी आप ही हैण और तूं आपे
ही सरूप मैण (जुग) जुड़ने वाला जोगी हैण तूं आपे ही रस रूप हैण और तिन रसोण के
(रसीअड़ा) लैंे वाला है अर तूं आप ही भोग रूप हैण पुनह भोगंे वाला भी आप हैण॥
तू आपे आपि वरतदा तू आपे करहि सु होगीआ ॥
तूं आप सरब मैण बरत रहा हैण और तूं आपे ही जो कुछ आगे पिछे करता हैण सो
होता है॥
सतसंगति सतिगुर धंनु धनुो धंन धंन धनो जितु मिलि हरि बुलग बुलोगीआ ॥
सतिगुरोण की सतसंगत भूत काल मैण धंन धंन थी अब भी धंन धंन है अर आगे को
भी धंन धंन होवेगी जिस विच हरी के (बुलग) बोलोण को बोलीता है॥

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