Faridkot Wala Teeka
स्री गुरू नानकसाहिब जी महाराज जिस समेण मैण देशांत्रोण मैण विचरते हूए कांशी जी मैण
पहुंचे तहां स्री गंगा जी के कनारे पर बहुत पंडत ठाकर पूजा कर रहे से तिनमैण एक
गोपाल नामा पंडत अनेक देवतिओण की मूरती औ ठाकर पूजा बिसथार करी बैठा था तब
स्री गुरूु जी चरन धोए बिनां तिस की पूजा असथान मैण जैसे थे तैसे ही जाइ इसथित हूए
तब गोपाल पंडत ने कोप कर कहा तुमने हमारी पूजा भ्रशट कर दई है तब स्री गुरू जी
ने बचन कीआ इस पखंड की पूजा से तेरी कलिआन नहीण होवेगी ऐसे बचन सुनते ही
तिस पंडत का चित नरम हो कर सरन पड़ा औ बेनती करी महाराज अब मुझ को अपना
अुपदेस करीए जिसते हमारी कलिआन होवे एते मैण और पंडत सभ इकत्र आन हूए तिस
गुपाल पंडत के प्रथाइ औ सरब को सुनावते हूए चार सलोकोण कर अुपदेश करते हैण॥
सति नामु करता पुरखु निरभअु निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुर
प्रसादि ॥
सलोक सहसक्रिती महला १ ॥
पड़ि पुसक संधिआ बादं ॥
सिल पूजसि बगुल समाधं ॥
हे पंडत जनोण पुसतक को पड़ कर (बादं) झगड़े करने और त्रिकालसंधिआ आदी
पाखंड करम जो हैण सो (बादं) विअरथ हैण॥ और सिला रूप सालगराम आदी पूजने अर
बगले वत समाधी का लगावणा॥
मुखि झूठु बिभूखन सारं ॥
त्रैपाल तिहाल बिचारं ॥
पुना मुख ते जो झूठ बोलते हैण सो विशेश करके (सारं) स्रेशट गहणे वत करके
दिखावते हो भाव इह झूठ को सच रूप कर देते हो (त्रैपाल) त्रिपदी जो गाइत्री है तिस को
(तिहाल) तीनोण समेण मैण वीचारते हो अरथात त्रिकाल संधिआ मैण गाइत्री पड़ते हो वा
त्रिलोकी की पालना करने हारा तुमारे हाल को वीचार रहा है॥
गलि माला तिलक लिलाटं ॥
दुइ धोती बसत्र कपाटं ॥
माला गल मैण पहर कर (लिलाटं) मसतक पर तिलक लगावते हो॥ औ पवित्रता
हेत दो धोतीआण राख कर पूजा समेण मैण (कपाटं) मसतक भाव तालू पर चार तह कर परना
गिज़ला करके राखते हो वा (पाटं) रेशम के बसत्रोण का पहरना करते हो॥
जो जानसि ब्रहमं करमं ॥
सभ फोकट निसचै करमं ॥
जो ब्रहम की प्रापतीके करमोण को नहीण जानता है भाव से साधनोण ते हीन है वा जो
ब्रहम की प्रापती के करम साधन जानता है तिस के निसचे मैण पूरबोकत करम (फोकट)
आसार अरथात निसफल हैण॥
कहु नानक निसचौ धिावै ॥
बिनु सतिगुर बाट न पावै ॥१॥
स्री गुरू जी कहिते हैण तां ते हे भाई निसचा करके वाहिगुरू के नाम को ही
धिआवै॥ परंतू इह जीव सतिगुरोण ते बिनां धिआन का (बाट) मारग नहीण पावता है॥१॥