Faridkot Wala Teeka

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चअुबोले महला ५
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
चअुबोले छंद वसेस हैण वा जो चार भगतोण ने बोले हैण सोई स्री गुरू जी ने अुचारन
कीए हैण॥ लहौर के बीच स्री गुरू जी के सिज़ख थे संमन और मूसन पिता पुत्र दोनोण एक समेण
स्री गुरू अरजन साहिब जी तिन के ग्रहि मैण प्रापति भए अुनके पास पदारथ नहीण था तब
अुन दोनोण ने जाइकर गुरू जी की सेवा हेत किसी बनीए की दुकान के अूपर से पाड़ कर
जो पदारथ चाहीता था सो ले लीआ संमन जो मूसन का पिता था सो दुकान की छत के अूपर
खड़ा हूआ वसतूआण पकड़ी जाता था और मूसन नीचे से पकड़ावता था जब पुत्र को संमन
अुपर से छत विचोण खैणचंे लगा तब तिस बनीए ने जाग कर मूसन की नीचे से लात पकड़
लई तब संमन ने विचारिआ जेकर हमारा करम जाहिर हूआ तौ लोक कहैणगे गुरू के सिख
ऐसा करम करते हैण इस करके पुत्र का सीस काट लीआ अर ओह पदारथ लिआइकर स्री
गुरू जी संयुगति संगत का प्रसादि तिआर करके हजूर मेण अरज करी॥ स्री गुरू जी
प्रसादि छकने को सरब संगति साथ लंगर मैण जाइ बैठे तब संमन ने प्रसादि परोसिआ
देख कर अंतरजामी महाराज कहिते भए हे संमन मूसन कहां है अुसको बुलावो तौ प्रसादि
छकेणगे ऐसे सुन कर संमन चुप रहा तिस समेण मैण स्रीगुरू अरजन देव जीने कहा आओ
मूसन प्रसादि छकैण ऐसा बचन करते ही मूसन ने अुसी प्रकार से हजूर आनकर नमसकार
करी तब गुरू जी ने प्रसादि छकिआ पुना जब महाराज बिराजवान भए तब संमन के मन
मेण आई कि मैने अपने पुत्र का सीस काटा था कुछ इस के मन मेण मेरी तरफोण गिलान न
होई होवे इस वासते तिनोण ने जो आपस मैण चरचा करी सोई स्री गुरू जी अपने स्री मुख
सेण अुचारन करते हैण॥
संमन जअु इस प्रेम की दम किहु होती साट ॥
रावन हुते सु रंक नहि जिनि सिर दीने काटि ॥१॥
संमन जी कहिते हैण हे पुत्र इह जो प्रेम रूपी पदारथ है इस की जिन को
(दमक्हिहु) झलक मात्र भी सज़ट होती है वा होई है पुना सो (रावन) राजा होते भए हैण रंक
नहीण रहे भाव ईशर रूप हो गए हैण जीव रूप नहीण रहे पुना वहु कैसे हैण जिनोण ने हंकार
आदी बिकार रूप सिर काट दीए हैण वा हे पुत्र जेकर इस प्रेम की (दमक्हिहु) दंमा करके
(साट) बदल सदल होती तौ लंकापती रावण रंक नहीण था जिस ने शिवजी की प्रसंता हेत
अपने सीस काट दीए थे। भाव येह हे पुत्र तां ते तूं भी सिर काटंे कर अपने चित मैण
रोस न कर॥१॥ मूसन अुत्र कहिता है॥
प्रीति प्रेमतनु खचि रहिआ बीचु न राई होत ॥
हे पिता जी सतिगुरोण औ हरी की प्रेम प्रीती मैण जिनोण का तन मन खचत होइ
रहिआ है तिनोण का राई मात्र भी (बीचु) अंतरा अरथात फरक नहीण होता है॥
चरन कमल मनु बेधिओ बूझनु सुरति संजोग ॥२॥
किअुणकि तिनोण का मन सतिगुरोण के चरन कमलोण मैण (बेधिओ) मिलकर अभेद हूआ
है इस बात को (सुरति) गिआत के संजोग करके (बूझनु) समझना होता है॥ भाव येह हे
पिता जी मेरी सुरति सतिगुरोण के चरनोण मैण लाग रही है तिसी ते सिर काटे की भी मुझ को
खबर नहीण है॥२॥ प्रेम की महतता अुचारन करते हैण॥
पंना १३६४

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