Faridkot Wala Teeka
मतीदास जाता भया इस कौतक को देखकर होर सिखोण ने कहा गुरू जी कुथाइं मरे बचन
हूआ चले जाओ तिन के बंधन छूट गए पहरूए सौण गए और इस पत्रिका को ले कर स्री
दसम गुरू जी के पास पुहंचे एक भाई गुरदिता जी जो बाबा बुढा जी के खशटम सथान थे
सो पास रहि गए तब सो पत्रिका निज मन प्रथाइ कहि कर सरबत्र सिखोण जोग अुपदेस रूप
औ दसम गुरू स्री गुरू गोबिंद सिंघ साहिब जी को पत्रिका लिखी॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
सलोक महला ९ ॥गुन गोबिंद गाइओ नही जनमु अकारथ कीनु ॥
कहु नानक हरि भजु मना जिह बिधि जल कअु मीनु ॥१॥
हे मन जिसने गोबिंद के गुनां ळ गाइन नहीण कीआ तिसने इस मानस जनम को
अकारथ कर दीआ है॥ स्री गुरू जी कहते हैण तां ते ऐसे हरि का भजन कर जिस तरह जल
को मछी सेवती है॥१॥
बिखिअन सिअु काहे रचिओ निमख न होहि अुदासु ॥
कहु नानक भजु हरि मना परै न जम की फास ॥२॥
हे मन बिखोण मेण किअुण (रचिओ) प्रेम कर रहा हैण निमख मात्र भी तिन बिखोण से
अुदास नहीण होता हैण॥ स्री गुरू जी कहते हैण अब भी हरि का भजन कर जो जम की फांसी
तेरे गल मेण न पवेगी॥२॥
तरनापो इअु ही गइओ लीओ जरा तनु जीति ॥
कहु नानक भजु हरि मना अअुध जातु है बीति ॥३॥
हे मन (तरनापो) जुबा अवसथा का समाण ता यौणही बिअरथ बिखोण मेण चला गिआ
और अब बुढेपे ने सभ इंद्रियोण कौ जीत लीआ। स्री गुरू जी कहते हैण अब यिह बुढेपे की
अवध भी बीती जाती है तां ते हरि का भजन कर॥३॥
बिरधि भइओ सूझै नही कालु पहूचिओ आनि ॥
कहु नानक नर बावरे किअु न भजै भगवानु ॥४॥अरे मूरख नर बुढा हो गया हैण नेत्रोण से तेरे को सूझता भी नहीण है काल भी निकट
आइ पहुंचा है। स्री गुरू जी कहते हैण तूं किअुण नहीण भगवान का भजन करता भाव येह
कि अब भी भजन कर॥४॥
धनु दारा संपति सगल जिनि अपुनी करि मानि ॥
इन मै कछु संगी नही नानक साची जानि ॥५॥
धन और इसत्री और हय गयादि संपति इनको मत अपनी करके (मानि) समझ
इनमेण तेरा कुछ भी (संगी) संग जानेहारा नहीण है स्री गुरू जी कहते हैण यिह मेरी सिखा
सची समझ॥५॥
पतित अुधारन भै हरन हरि अनाथ के नाथ ॥
कहु नानक तिह जानीऐ सदा बसतु तुम साथि ॥६॥