Faridkot Wala Teeka
मुंदावणी महला ५ ॥
थाल विचि तिंनि वसतू पईओ सतु संतोखु वीचारो ॥
अंम्रित नामु ठाकुर का पइओ जिस का सभसु अधारो ॥
स्री गुरू ग्रंथ साहिब जी रूप थाल मैण तीन बसतू रखीआण हैण सत बोलना यथा लाभ
संतोख एह वसतू वीचारो अरथात समझो और तीसरा अंम्रित रूप नाम परमेशर दा गुरोण ने
पाया है जिस नाम दा सभ किसे ळ आसरा है अरथात अूच नीच कोई जपे सभ को मुकत
करता है॥
जे को खावै जे को भुंचै तिस का होइ अुधारो ॥
एह वसतु तजी नह जाई नित नित रखु अुरि धारो ॥
जो कोई इस भोजन को खाता है वा (भुंचे) खिलाअुता है वा जो अब खाते हैण आगे
जो खाएणगे तिस तिस का अुधार होता है और होइगा जिसने इस भोजन को कीआ है और
जिसको इस रस का साद आइआ है। तिससे फिर येह वसत तिआगी नहीण जाती है तां ते
तुम नितप्रति हिरदे मैण धारन कर रखो॥
तम संसारु चरन लगि तरीऐ सभु नानक ब्रहम पसारो ॥१॥
तिसका फल येह जो (तम) अंधकार रूप संसार है तिस से गुरोण के चरनोण मैण लग
करके तर जाईता है स्री गुरू जी कहते हैण सभ ब्रहम हीपसारा है, हे भाई वासतव
वीचार करने ते प्रतीत होता हे स्री गुरू अरजन देव जी स्री गुरू ग्रंथ साहिब जी की
समापती पर बेनती करते हैण:-
सलोक महला ५ ॥
तेरा कीता जातो नाही मैनो जोगु कीतोई ॥
हे अकाल पुरख तेरे कीए हूए अुपकार को मुझने कुछ नहीण जाना (ई) निहचे
करके सभ बातोण को और आपने (जोगु) लाइक भाव सभ बात मेण समरथ कीआ है॥
मै निरगुणिआरे को गुणु नाही आपे तरसु पइओई ॥
मुझ निरगुणी मैण कोई भी गुण नहीण था तुझको आपे ही मेरे पर (तरसु) दया
(पइओई) आई॥
तरसु पइआ मिहरामति होई सतिगुरु सजंु मिलिआ ॥
जब दा आई तब (मिहरामति) अतंत क्रिपा हूई चारोण साधन सपंन कीआ जब
सभ साधन प्रापत हूए तब स्री सतिगुर सजन अक्रितम अुपकारी मिलते भए॥
नानक नामु मिलै तां जीवाण तनु मनु थीवै हरिआ ॥१॥
स्री गुरू जी कहते हैण जब सतिगुरोण की क्रिपा से तेरा नाम मिले मैण जीवता हूं
यथा-आखा जीवा विसरै मरि जाअु॥ पुना-मरणं बिसरणं गोबिंदह जीवणं नाम धिवणह॥