Faridkot Wala Teeka

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तिस करके मेरा मन सूखम अंतशकरन तन सथूल सरीरसभ हरा हो रहा है सो
अुपक्रम सतिनाम से ले कर अुपसंग्रह सतिनाम मिले तो जीवता हूं कहि कर स्री गुरू ग्रंथ
साहिब जी की बीड़ कर चुके तो स्री गुरू ग्रंथ साहिब जी का भोग सुन कर ६ राग ३०
रागनी ४८ पुत्र सभ परवार समेत दरसन को आए और कीरतन कर बेनती पूरबक बोले
कि हे क्रिपा सिंधु जी हम सभ के वकत का कैसे निरणे होगा तब स्री गुरू अरजन देव जी
ने भाई गुरदास जी को आगा करी कि जैसे स्री गुरू गरंथ साहिब जी के आदि मैण शबदोण
का सूची पत्र लिखा है तिसी भांत रागोण का सूचीपत्र मंगल रूप अंत मेण लिखो। तब भाई
गुरदास जी ने एही छे राग और तीस रागनी, अठतालीस पुत्र जो आए थे सो राग माला
रखी है॥
सतिगुर प्रसादि
राग माला ॥
राग एक संगि पंच बरंगन ॥
संगि अलापहि आठअु नदन ॥
एक एक राग साथ पांच पांच (बिरंगन) स्रेशट इसत्रीआण हैण पुना एक एक राग
आठ आठ पुत्रोण सहित रागी जन अुचारन करते हैण॥
प्रथम राग भैरअु वै करही ॥
पंना १४३०पंच रागनी संगि अुचरही ॥
प्रथम भैरवी बिलावली ॥
पुंनिआकी गावहि बंगली ॥
पुनि असलेखी की भई बारी ॥
ए भैरअु की पाचअु नारी ॥
पहिले वहु रागी जन सवेरे सुूरज अुदे हुंदे नाल भैरव राग को अुचारन करते हैण
और पांचोण रागनीआण भैरोण राग की संग ही सो गवज़ये अुचारन करते हैण॥ १ भैरवी २
बिलावली ३ पुंनिआकी ४ बंगली गावते हैण बहुड़ो पंजवीण असलेखी रागंी के गाअुंे की
वारी होई। सो एह भैरव राग की पंजे इसत्रीआण हैण॥ अब आठ पुत्रोण के नाम कहते हैण:-
पंचम हरख दिसाख सुनावहि ॥
बंगालम मधु माधव गावहि ॥१॥
पंचम (१) एक हरख (२) दो औ तीसरे का नाम दिसाख सुनावते हैण। पुना (४)
चौथा बंगालम (५) पांचवाण मधू, पुना (६) छेवाण माधव को गावते हैण॥
ललत बिलावल गावही अपुनी अपुनी भांति ॥
सो गुनी जन ललित (७) सातवाण अर बिलावल (८) आठवेण को अपनी अपनी
(भांति) तरह गावते हैण॥असट पुत्र भैरव के गावहि गाइन पात्र ॥१॥
सो एह भैरव राग के आठोण ही पुत्र गावने के जो (पात्र) अधिकारी हैण सो गावते
हैण॥

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