Faridkot Wala Teeka

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रागु आसा महला४ सो पुरखु
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
सो पुरखु निरंजनु हरि पुरखु निरंजनु हरि अगमा अगम अपारा ॥
सभि धिआवहि सभि धिआवहि तुधु जी हरि सचे सिरजंहारा ॥
सभि जीअ तुमारे जी तूं जीआ का दातारा ॥
हरि धिआवहु संतहु जी सभि दूख विसारणहारा ॥
हरि आपे ठाकुरु हरि आपे सेवकु जी किआ नानक जंत विचारा ॥१॥
पुरखु नामु विराट का है सो तूं निरंजन पुरखु भूत काल मेण भी मन बांणी से परे
अगमयथा सो तूं हरि निरंजनु पुरखु वरतमान काल मेण भी अगम हैण सो तूं हरि पुरखु
भविज़खत काल मेण भी (अपार) अगम ही रहेणगा। हे सचे सिरजनहार हरी (तुध) तेरे को
ही सभ पहिले धाअुते थे औरु अब भी सभ धावते हैण औरु आगे भी धियावेगे यदपि
ईहदा धिआवहि पदु हैण तथापि एक का अज़धाहारु करलेना वा मन बांणी कर सभ जीव
तेरे को ही धावते हैण हे हरि जी सभि जीव तुमारे अुतपंन कीए हैण और तुहीण सभ जीवोण
के प्रति भोग और मोछ का दाता हैण अरु मैण ऐसे अुपदेसु करता हूं। हे भाई संत जनो जो
सभ दुज़खोण के विसारने भाव दज़ुख दूर करके सुख देंे हारा है तिस हरि जी को धिआवो हे
संतो हरि आपे ही ठाकुरुअरथात सामी है अरु हरी आपे ही सेवकु है स्री गुरू जी कहते
हैण मै किा विचारा तुज़छ जीव हूं जो तिस का जसु वरनन कर सकूं॥१॥
पंना ११
तूं घट घट अंतरि सरब निरंतरि जी हरि एको पुरखु समाणा ॥
इकि दाते इकि भेखारी जी सभि तेरे चोज विडांा ॥
तूं आपे दाता आपे भुगता जी हअु तुधु बिनु अवरु न जाणा ॥
तूं पारब्रहमु बेअंतु बेअंतु जी तेरे किआ गुण आखि वखाणा ॥
जो सेवहि जो सेवहि तुधु जी जनु नानकु तिन कुरबांा ॥२॥
हे हरिपुरख जी सभ घटोण घटोण के अंतर (निरंतरि) एक रस तूं ही एक समाइ
रहा हैण हे हरिजी संसार मै जो एक दाते बने हूए हैण औरु एक भिज़छक बने हूए हैण एह
सभ (विडांा) असचरज रूप तेरे ही (चोज) तमाशे हैण तूं आप ही दाता हैण अरु आप ही
भुगता हैण मैतो तेरे बिना दूसरा कोई नही जानता हूं हे पारब्रहम जी तूं तीनो कालोण मे
अंतर हित हैण मैण तेरे गुनोण को मुख से किआ वरनन करूं स्री गुरू जी कहते हैण जो तेरे
दास मन करके सेवन करते हैण मैण तिन दासोण पर बलिहार जाता हूं॥२॥
हरि धिआवहि हरि धिआवहि तुधु जी से जन जुग महि सुखवासी ॥
से मुकतु से मुकतु भए जिन हरि धिआइआजी तिन तूटी जम की फासी ॥
जिन निरभअु जिन हरि निरभअु धिआइआ जी तिन का भअु सभु गवासी ॥
जिन सेविआ जिन सेविआ मेरा हरि जी ते हरि हरि रूपि समासी ॥
से धंनु से धंनु जिन हरि धिआइआ जी जनु नानकु तिन बलि जासी ॥३॥
हे हरि जी जो आपको मन और बांणी करके धिआवते हैण सो दास (जुग) संसार मैण
वा जुग जुग मैण भाव सदा सुखी वसते हैण हे हरि जी जिनो ने आपको धयाइआ है सोई

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