Faridkot Wala Teeka

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पंना १४
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
रागु सिरीरागु महला पहिला १ घरु १ ॥
एक समेण स्री गुरू नानक देव जी जगननाथ मैण समुंद्रके किनारे पर बैठे हुए थे
तब महां भयानक अंधेरी अुठी तिस को देख कर मरदाना भैवान हूआ और नेत्र मूंद मुख
पर बसत्र ले कर पड़ गा इतने मैण महां भयानक सरूप धार कर कलजुग आइ गया स्री
गुरू जी अडोलही बैठे रहे तब अधिक प्रतापी जान कर चरनोण पर आइ पड़ा और
अुसतती करने लगा और कहा कि हे भगवन मै इस समेण का राजा हूं मोती आदिक
जवाहर और सुंदर मंदर और रिज़धि सिज़धि तथा राजादिक सभ मेरे अधीन हैण सो आप
क्रिपा करके मेरी भी कुछ भेटा अंगीकार करीए तब तिस को अुज़तर देने नमिज़त स्री अकाल
पुरख जी के सनमुख बेनती मैण शबद अुचारन कीआ॥ कलयुग का मतलब एहु था के जब
मैण गुरू जी को बिभूतीओण से भ्रमाइकर लोकां को इन के अुपदेश से फैदा न होंे देवाणगा
तब मेरा हुकम सभ परबना रहेगा। ऐसे जब बेईण मे इशनान के नमिज़त बिशळ पास
गए हैण तब सनमुख हो कर बेनती करी है॥
मोती त मंदर अूसरहि रतनी त होहि जड़ाअु ॥
मोतीओण करके तौ मंदर अूसरे होए होवेण और नील मणी आद अंन रतनोण करके
जड़े हूए होवेण भावसे पुरश अती अलौकक बिभूती सहित होवे॥
कसतूरि कुंगू अगरि चंदनि लीपि आवै चाअु ॥
कसतूरी अोर (कुंगू) केसर (अगरि) एक सुगंध वाली लकड़ी होती है और
बावनादि चंदन इस सभनोण को घस कर तिन मंदरोण को लेपन कीआ होवे और अुनको देख
कर मन मैण (चाअु) अुतशाह आवे॥
मतु देखि भूला वीसरै तेरा चिति न आवै नाअु ॥१॥
मति ऐसे मंदरोण को देखकर तिन के मदसो भुल जाअूण ऐसे बीसरे हूए को हे
वाहगुरू तेरा नाम चिति न आवे॥१॥
हरि बिनु जीअु जलि बलि जाअु ॥
मै आपणा गुरु पूछि देखिआ अवरु नाही थाअु ॥१॥ रहाअु ॥
हे हरी तेरे नाम बिनां जीव नरक वा गरभ रूपी प्रजलति होई अगनी मै बल
जावे जे कहै जीव तो जलता नहीण तिस का समाधान॥ प्रिथमे जीव का सरूप अधिसान अर
बुधी अविदा अर तिनमै जो अभास है सोशासत्र ने कहा है तिन तीनोण मै से मरन अर
जलन आदि भाव दुखोण का अर सुखोण का भागी बुधी दारा चिदाभास है इस अंस को ले कर
गुरू जी ने जीव का जलना कहा है अर जो अधिसान है तिस मै दुखोण का अभाव है॥ इस
वासते शासत्र मै लिखा है कि जीव को अगनी जलाइ नहीण सकती जलु गाल नहीण सकता
इतादि स्री गुरू जी कहते हैण मैने आपने गुरू को पूछ देखा है भाव येह कि हे भगवन
आप जो मेरे गुरू हो आपका सरूप जो बेद हैण तिनो से भी सुण लीआ है और अपने अनुभव
से भी देखा है कि तेरे बिना जीव को होर सुख का सथान नहीण है॥
धरती त हीरे लाल जड़ती पलघि लाल जड़ाअु ॥
मोहणी मुखि मणी सोहै करे रंगि पसाअु ॥

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