Faridkot Wala Teeka
संत का दोखी कितै काजि न पहूचै ॥
संतोण का दोखी अध बीचे से ही टूट जाता है अरथात जवानी की मौत मरता है जो
साधन करता है वहु अध बीच मेण ही रह जाता है पूरन नहीण हो सकता है पुना संत का
दोसी किसी कारज कौ पहुंच नहीण सकता है अरथात तिस का कोई कारज पूरन नहीण होता
है॥
संत के दोखी कअु अुदिआन भ्रमाईऐ ॥
संत का दोखी अुझड़ि पाईऐ ॥
संत के दोखी कौ संसार रूपी (अुदिआन) बन मै भ्रमाईता है संत के दोखी कौ औझड़
मैण पाईता है भाव सज़त मारग ते भ्रशट रसते मेण चलाईता है॥
संत का दोखी अंतर ते थोथा ॥
जिअु सास बिना मिरतक की लोथा ॥
संत का दोखी रिदे अंतर से (थोथा) खाली होता है भाव से सुभ गुणों से रहित होता
है जैसे सास बिनां म्रितक की लोथ होती है॥
संतके दोखी की जड़ किछु नाहि ॥
आपन बीजि आपे ही खाहि ॥
संत के दोखी की जड़ किछ नहीण है वहु अपने निंदा रूप पाप करम के बीज कौ
बोइ कर तिस का दुख रूप फल आप ही खाता अरथात भोगता है॥
संत के दोखी कअु अवरु न राखनहारु ॥
नानक संत भावै ता लए अुबारि ॥५॥
तिस संत के दोखी कौ और कोई रखा करने हारा नहीण है स्री गुरू जी कहते हैण
जेकर संत कौ भावे तौ तिस को दुखोण से अुबार लेवे॥५॥
संत का दोखी इअु बिललाइ ॥
जिअु जल बिहून मछुली तड़फड़ाइ ॥
संत का दोखी ऐसे बिरलाप करता है जैसे जल से बिनां मछी तड़फड़ावती है॥
संत का दोखी भूखा नही राजै ॥
जिअु पावकु ईधनि नही ध्रापै ॥
संत का दोखी त्रिशना कर भूखा हूआ त्रिपत नहीण होता है जैसे अगनी बालन से
नहीण त्रिपते है॥
संत का दोखी छुटै इकेला ॥
जिअु बूआड़ु तिलु खेत माहि दुहेला ॥
संत का दोखीअकेला ही छूटता है भाव से तिस का कोई रखक साथी नहीण होता है
जैसे तिलोण के खेत मैण जो (बूआड़ु) दांे से खाली तिल का बूटा होता है सो अकेला होंे से
(दुहेला) दुखी रहिता है॥
संत का दोखी धरम ते रहत ॥
संत का दोखी सद मिथिआ कहत ॥
संत का दोखी धरम से रहित होता है॥ और संत का दोखी सदा झूठ ही कहिता है॥
किरतु निदक का धुरि ही पइआ ॥