Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १२) १४
राशि बार्हवीण चज़ली
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ॴ श्री वाहिगुरू जी की फतह ॥
अथ दादशमि रासि कथन ॥
१. ।मंगल। राजा मान सिंघ॥
ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १२ अगला अंसू>>२
१. इश देव-श्री अकाल पुरख-मंगल।
दोहरा: पारब्रहम! परमातमा! बापक सकल समान!
सभि अलब! प्रेरक! प्रभू! बिदतहु रिदे महान ॥१॥
पार ब्रहम = पर ब्रहम, परम ब्रहम। जिस तोण परे ते अुपर होर कोई
नहीण, ऐसा ब्रहम।परमातमा = देखो श्री गु: ना: प्र: पू: अधा: १ अं: ४ दे पद अरथ।
अरथ: (हे) पार ब्रहम! (हे) परमातमा! (हे) सारिआण विच इक तुज़ल रमे होए!
(हे) सभि दे आश्रा! (हे) सभ दे प्रेरक! (हे सभ दे) मालिक! (हे सभ तोण)
वज़डे! मेरे हिरदे विच प्रगट होवो।
भाव: कवि जी समानसज़ता करके प्रभू दी विआपकता, अुज़चता, प्रेरकता, ते आश्रा
रूप होण दा प्रोख गान तां रखदे हन पर अरदास इह कर रहे हन कि
मेरे मन दी प्रतीती दे मंडल विच आप विशेशता करके प्रकाश पाओ जो आप
दे सामरतज़ख मिलाप (अप्रोख गान) दा रस मैळ प्रापत होवो।
२. कावि-संकेत मिरयादा दा मंगल।
सैया: सुंदर अुज़जल चंद अमंद
मनिद दिपै मुख दुंदन हानी।
चंद्रिका चंद्रिक पारद नारद
सारद अंग के रंग समानी।
देव जि ब्रिंद करैण अभिनदन
आनद कंद बिलद सु जानी।
तां पद के अरबिंदनि को
गन बंदन ठानि रचौण बरबानी ॥२॥
अमंद = जो मज़धम नां पवे, जो इको जिहा लगातार चमके, सज़छ, स्रेशट,
निशकलक।
दुंद = दंद = हरख, शोक, दुख सुख आदि जोड़े। कलेश,दुख कशट। भाव
इह है कि शारदा दा चिहरा चंद वाणू बाहर ही प्रकाशमान नहीण सगोण कवीआण दे
हिरदे विच जो राग दैख आदि आवरण अुज़ची कविता दे प्रतिबंधक अुपजदे हन
अुहनां ते प्रकाश पा के सज़छ बुज़धी दा प्रकाशक है।